Mann Ke Bhaav offers a vast collection of Hindi Kavitayen. Read Kavita on Nature, sports, motivation, and more. Our हिंदी कविताएं, Poem, and Shayari are available online!
दिसंबर 13, 2020
दिसंबर 06, 2020
जीवनचक्र
मिट्टी के मानव के घर में,
किलकारी भरता जीवन है,
मिट्टी के मानव के घर में,
शोकाकुल मृत्यु क्रन्दन है |
बसंती बाग़-बगीचों में,
पुलकित पुष्पों का जमघट है,
पतझड़ की उस फुलवारी में,
सूखे पत्तों का दर्शन है |
ऊँचे तरुवर के फल का,
नीचे गिरना निश्चित है,
उतार-चढ़ाव जीत-हार जग के,
सौंदर्य के आभूषण हैं |
माया की क्रीड़ा तो देखो,
स्थिर स्थूल केवल परिवर्तन है,
दुःख की रैन के बाद ही,
सुख के दिनकर का वंदन है ||
नवंबर 28, 2020
बेमतलब है
मतलब की सारी दुनिया है,
मतलब के सारे रिश्ते हैं,
जिसको मेरी कदर नहीं,
उससे रिश्ता बेमतलब है |
सबके अपने मसले हैं,
सबके अपने मंसूबे हैं,
मन के बहरों से क्या बोलूं,
कुछ भी कहना बेमतलब है |
जीते-जी जीना ना जाना,
कल के जीवन पर पछताना,
हालात बदलने से कतराना,
ऐसा जीवन बेमतलब है ||
नवंबर 23, 2020
कविता क्या है ?
दिनकर के वंदन में कलरव,
पवन के झोंके में पल्लव,
पुष्पों पर भँवरों का गुंजन,
नभ पर मेघों का गर्जन |
वन में कुलाँचते सारंग,
अम्बर पर अलंकृत सतरंग,
सागर की लहरों की तरंग,
उत्सव में बजता मृदंग |
पन्ने पर लिखा कोई गीत,
कर्णप्रिय मधुरम संगीत,
जीवन का हर वो पल,
जो बीते संग मनमीत ||
नवंबर 17, 2020
मैंने एक ख्वाब देखा
माता की गोद जैसे,
मखमल के नर्म बिस्तर पर,
संगिनी की बांहों में,
निद्रा की गहराइयों में,
मैंने एक ख्वाब देखा |
नीले आज़ाद गगन में,
हल्की बहती पवन में,
पिंजरे को छोड़,
बेड़ी को तोड़,
उड़ता जाऊं क्षितिज की ओर |
श्वेत उजाड़ गिरी से,
ऊबड़-खाबड़ भूमि से,
ध्येय को तलाश,
राह को तराश,
बहता जाऊं सागर की ओर |
मिथ्या मलिन जगत से,
जीवन-मरण गरल से,
निद्रा से जाग,
व्यसनों को त्याग,
बढ़ता जाऊं मंज़िल की ओर ||
नवंबर 14, 2020
शुभ दीवाली
घर-आँगन-छत-जीना-गोदाम,
स्वच्छता के छूना नए आयाम,
नए रंग में रंगा पुराना मकान,
सजे रंगोली कंदील मिष्ठान,
दीपों की सुसज्जित माला,
खील-बताशे नया पहनावा,
अभिनंदन व शुभ संवाद,
बुज़ुर्गों का शुभ आशीर्वाद,
श्यामिल रात्रि प्रकाशित भयी,
सपरिवार सबके साथ ||
नवंबर 12, 2020
धनतेरस
रोग-दुःख-पीड़ा-संताप,
कष्ट सब मिट जाएँ |
पर्व यह सबके जीवन में,
सुख-समृद्धि लाए ||
नवंबर 06, 2020
मेरे पास समय नहीं है
वो गर्मी की छुट्टियों में मेरा,
नाना-नानी के घर पर जाना,
वो मामा का अपार गुस्सा,
मामी संग जम कर बतियाना,
वो चाचा की शादी पर मेरा,
घोड़ी चढ़कर घबराना,
वो चाची की गोदी में मेरा,
सोने की ज़िद पर अड़ जाना |
बुआ का प्यार माँसी का दुलार,
भाई-बहन खेल-तकरार,
संगी-साथी बचपन के यार,
छोटे-बड़े सब नाते-रिश्तेदार,
याद सब है बस,
मिलने का, बतियाने का,
रूठने का, मनाने का,
मेरे पास समय नहीं है ||
वो कॉलेज की दीवार फाँद,
छुप-छुप के सिनेमाघर जाना,
वो लेक्चर बंक करके,
कैंटीन में गप्पें लड़ाना,
वो जन्मदिन के नाम पर,
बेचारे दोस्त के पैसे लुटाना,
वो अंतिम दिन इक-दूजे से,
फिर-फिर मिलने के वादे सुनाना |
पुराने दोस्त, करीबी यार,
जीवन का पहला-पहला प्यार,
खुशी के पल, गम के हालात,
हँसी-ठिठोले, पहली मुलाकात,
याद सब है बस,
मौज का, मस्ती का,
अल्हड़ मटरगश्ती का,
मेरे पास समय नहीं है ||
वो पहली किरण पर मेरा,
खुले मैदान में दौड़ लगाना,
वो साँझ के समय में,
रैकेट उठाकर खेलने जाना,
वो जागती आँखों से मेरा,
भविष्य के सपने सजाना,
वो दिन-दिनभर मोबाइल पर,
निरंतर वीडियो चलाना |
खेल-कूद गेंद और गिटार,
खुद कुछ कर दिखाने के विचार,
अधूरे ख़्वाब, दिल की चाह,
मन को भाति वो जीवनराह,
याद सब है बस,
सुख का, चैन का,
अपने लिए जीने का,
मेरे पास समय नहीं है ||
नवंबर 04, 2020
करवाचौथ
माथे पर गुलाबी रेखा,
तन पर लहंगा है लाल,
मन में अपने पिया की,
लम्बी आयु का ख्याल |
अपने कठोर तप के फ़ल में,
जन्म-जन्मांतर का बंधन माँग,
व्याकुल है अपने चाँद संग,
करने को दीदार-ए-चाँद ||
अक्टूबर 21, 2020
कुछ अधूरी ख्वाहिशें
वो चेहरा एक सलोना सा,
जो ख़्वाबों में, विचारों में,
अक्सर ज़ाहिर हो जाता है |
जिसको चाहा है उम्रभर,
उसकी यादों के भंवर में,
मन मेरा बस खो जाता है ||
वो शौक एक अनूठा सा,
जिसमें बीता हर इक पल,
मेरे तन-मन को भाता है |
रोज़ी-रोटी के फेर में,
बरबस बीते यह ज़िंदगी,
वक्त थोड़ा मिल ना पाता है ||
वो दामन एक न्यारा सा,
जो बचपन की हर कठिनाई,
का अक्षुण्ण हल कहलाता है |
बेवक्त छूटा था वह साथ,
कह ना पाया था मैं जो बात,
कहने को दिल ललचाता है ||
वो स्वप्न एक प्यारा सा,
जो मन की गहराइयों में,
स्थाई स्थान बनाता है |
भरसक प्रयत्न करके भी,
वह सपना यथार्थ में,
परिवर्तित हो ना पाता है |
वो शोक एक भारी सा,
रह-रहकर चित्त की देह को,
पश्चाताप की टीस चुभोता है |
पृथ्वी की चाल, बहती पवन,
शब्दों के बाण, बीता कल,
पलटना किसको आता है ??
वो भाग्य एक कठोर सा,
कर्मठ मानव के कर्म का,
फल देने से कतराता है |
अपेक्षाओं के ख़ुमार में,
माया के अद्भुत खेल में,
मूर्छित मानव मुस्काता है ||
अक्टूबर 10, 2020
एक भारतीय का परिचय
क्या मेरी पहचान, क्या मेरी कहानी है,
मज़हब मेरा रोटी है, नाम बेमानी है |
संघर्ष मेरा बचपन है, प्रतिस्पर्धा मेरी जवानी है,
बीमार मेरा बुढ़ापा है, जीवन परेशानी है |
पौराणिक मेरी सभ्यता है, परिचय उससे अनजानी है,
वर्तमान मेरा कोरा है, भविष्य रूहानी है |
सरहदें मेरी चौकस हैं, पड़ोसी बड़े शैतानी हैं,
गुलामी के दाग अब भी हैं, ताकत अपनी ना जानी है |
बाबू मेरे साक्षर हैं, नेता अज्ञानी हैं,
जनता मेरी भोली-भाली, सहती मनमानी है |
रंग मेरा गोरा-काला, बातें आसमानी हैं,
पहनावा मेरा विदेशी है, कृत्यों में नादानी है |
और मेरी पहचान नहीं, नम:कार मेरी निशानी है,
भारत मेरा देश है, दिल्ली राजधानी है ||
अक्टूबर 06, 2020
सुबह सूरज फिर आएगा
जब-जब जीवन के सागर में,
ऊँचा उठता तूफाँ होगा,
जब-जब चौके की गागर में,
पानी की जगह धुँआ होगा,
जब बढ़ते क़दमों के पथ पर,
काँटों का जाल बिछा होगा,
जब तेरे तन की चादर से,
तन ढकना मुमकिन ना होगा |
तब तू गम से ना रुक जाना,
ना सकुचाना, ना घबराना,
आता तूफाँ थम जाएगा,
पग तेरे रोक ना पायेगा,
कर श्रम ऐसा तेरे आगे,
पर्वत भी शीश झुकाएगा,
हंस के जी ले कठिनाई को,
सुबह सूरज फिर आएगा ||
अक्टूबर 03, 2020
2 अक्टूबर
जिसने दी संसार को,
सत-अहिंसा की सीख थी,
जिसकी दृष्टि में किसान की,
अहमियत जवान सरीख थी |
ऐसे महापुरुषों के उद्गम,
की साक्षी यह तारीख है,
निंदा की निरर्थकता का,
प्रमाण हर तारीफ़ है ||
सितंबर 26, 2020
कोरोना
यह अनजाना अदृश्य शत्रु,
जाने कहाँ से आया है,
सारी मानव सभ्यता पर,
इसके भय का साया है |
थम गया जो दौड़ रहा था,
निरंतर निरंकुश - यह संसार,
अचल हुए जो चलायमान थे,
व्यक्ति वाहन और व्यापार |
संगी-साथी से छूट गया,
दिन-प्रतिदिन का सरोकार,
घर से बाहर अब ना जाए,
सांसारिक मानव बार-बार |
आशंकित भयभीत किंकर्तव्यविमूढ़,
जूझ रहा आदम भरपूर,
क्या कर पाएगा इस आफ़त को,
वह समय रहते दूर ???
सितंबर 08, 2020
नवजीवन
भद्दी नगरीय इमारत पर,
जड़ निष्प्राण ठूँठ पर,
मरु की तपती रेत पर,
गिरी के श्वेत कफ़न पर,
नवजीवन का अंकुर फूटे,
प्रतिकूल पर्यावरण का उपहास कर |
अगस्त 20, 2020
क्यों है मानव इतना अधीर ?
हिंसा का करे अभ्यास,
प्रकृति का करे विनाश,
अणु-अणु करके विखंडित,
ऊष्मा का करे विस्फोट,
स्वजनों पर करे अत्याचार,
लकीरों से धरा को चीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
ट्रेनों में चढ़ती भीड़,
ना समझे किसीकी पीड़,
रनवे पे उतरे विमान,
उठ भागे सीट से इंसान,
बेवजह लगाए कतार,
मानो बंटती आगे खीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
उड़ती जब-जब पतंग,
स्वच्छंद आज़ाद उमंग,
करती घायल उसकी डोर,
जो थी काँच से सराबोर,
खेल-खेल में होड़ में,
धागे को बनाता नंगा शमशीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
नवीन नादान निर्दोष मन,
चहकती आँखें कोमल तन,
डाल उनपर आकांशाओं का भार,
करता बालपन का संहार,
थोपता फैसले अपने हर बार,
समझता उनको अपनी जागीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
तारों को छूने की चाह में,
वशीभूत सृष्टि की थाह में,
वन-वसुधा-वायु में घोले विष,
बेवजह करे प्रकृति से रंजिश,
ना समझे कुदरत के इशारे,
कर्मफल के प्रति ना है गंभीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
दौर यह अद्वितीय आया है,
दो गज की दूरी लाया है,
सदियों से परदे में नारी,
आज नर ने साथ निभाया है,
कुछ निर्बुद्धि निरंकुश निराले नर,
तोड़ें नियम समझें खुद को वीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
अगस्त 15, 2020
आओ करें हम याद उन्हें
श्रावण के महीने में इक दिन,
बही थी आज़ादी की बयार,
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को,
बरसी स्वतंत्रता की फुहार |
रवि खिला था रैन घनी में,
दशकों के श्रम का परिणाम,
आओ करें हम याद उन्हें जो,
भेंट चढ़े थे राष्ट्र के नाम ||
जुलाई 30, 2020
मेरा मन
जैसे बहती वायु में, पत्तों भरी डाली डोले,
जैसे सावन के झूले-हिंडोले, खाएं हिचकोले,
जैसे नन्हा सा इक बालक, जीवन में चंचलता घोले,
मन मेरा उद्विग्न उतना,
यहाँ ना रुके, वहाँ ना टिके,
इत-उत डोले इत-उत डोले ||
जुलाई 26, 2020
कारगिल
जल-मरु-गिरी पृथ्वी-आकाश,
कहीं से आए शत्रु चालाक,
भारत के वीरों के आगे,
सफल न होंगे इरादे ना-पाक ||
जुलाई 19, 2020
कलम
कोरे-कोरे कागज़ पर,
छोड़कर काले-नीले निशान,
करता जीवंत, फूँकता जान,
नित-नव-नाना दास्तान |
कभी उगलता सुन्दर आखर,
कभी चित्र मनोरम बनता,
कभी रचता घृणा की गाथा,
कभी करता स्नेह का बखान |
कहीं कमीज़ की जेब में अटका,
कहीं बढ़ई के कान पे लटका,
कभी पतलून की जेब में पटका,
कभी पर्स में भीड़ में भटका |
कभी लिखावट मोती जैसी,
कभी चींटी के पदचिन्हों जैसी,
कभी आढ़ी-तिरछी लकीरें खींचे,
नन्हे कर-कमलों को सींचे |
कभी भरे दवाई का पर्चा,
कभी लिखे परचून का खर्चा,
कभी खींचे इमारत का नक्शा,
कभी नेकनामी पर करे सम्मान |
किसी के दाएं कर में शोभित,
किसी के बाएं कर में शोभित,
गर करविहीन स्वामी हो प्रेरित,
सकुचाता नहीं गाता सबका गान ||
जुलाई 17, 2020
वर्षाऋतु
रिमझिम-रिमझिम टिप-टिप-टिप-टिप,
नभ से उतरे जीवन-अमृत,
घुमड़-घुमड़ उमड़-घुमड़ तड़-तड़,
श्यामिल घटा गरजे बढ़चढ़,
शुष्क धरा की मिटी पिपासा,
हरी ओढ़नी रूप नया सा,
पंख फैलाए, नाच दिखाए,
बागों में मोर इठलाए,
सावन के झूले लहराएं,
नभ के पार ये जाना चाहें,
सतरंगी पौढ़ी से उतरकर,
वैकुण्ठ खुद थल पर आए ||
जुलाई 15, 2020
नई शुरुआत
ठहर गई थी जो कलम,
रुक गई थी जो दास्तान,
थम गया था मन का प्रवाह,
बंद थी विचारों की दुकान |
लौटी जीवन-शक्ति अब फ़िर,
लेकर नई उमंग, जोश इस बार,
निकलेगा विचारों का काफ़िला,
शब्दों में फिर इक बार ||
फ़रवरी 27, 2020
अकेला
दुनिया के इस रंगमंच पे,
तू अकेला अदाकार है,
ना तेरा कोई साथी,
ना तेरा कोई विकल्प है |
गम अगर हो कोई तुझे,
तो कोई ना उसको बांटेगा,
खुश अगर तू हो गया,
तो गम मौका ताकेगा |
मौका मिलते ही फिरसे,
खुशी तेरी गायब होगी,
गम लौट के आएगा,
दुखी तेरी फितरत होगी ||
मदद किसी की करदे तो,
भलामानस कहलायेगा,
मदद किसी से मांगेगा,
सिर्फ दुत्कार ही पायेगा |
पीठ पीछे बातें होंगी,
खिल्ली तेरी खूब उड़ेगी,
कल तक जो अपने लगते थे,
दूरी उनसे खूब बढ़ेगी ||
सही-गलत में क्या भेद है,
दुनिया इसको भूल चुकी है,
अपना जिसमें लाभ हो,
बाकी गलत सिर्फ़ वही सही है |
सच्चाई का साथ अगर दे,
तो झूठा कहलायेगा,
दुनिया तुझपे थूकेगी,
कुंठित मन हो जाएगा ||
छोड़ दे दूजे की परवाह,
छोड़ दे खुशियों की चाहत,
छोड़ दे सच्चाई का साथ,
सुन ए बंदे पते की बात |
कोई न तेरा अपना है,
कोई न तुझको अपनाएगा,
इस झूठी दुनिया में,
तू,
अकेला आया था,
अकेला ही जाएगा ||
फ़रवरी 17, 2020
कौन हो तुम?
तेरी मुस्कान से है मेरी खुशी,
तेरे आँसुओं से मेरे गम,
तेरी हँसी के लिए मैं दे दूँ जां,
तेरे क्रोध से निकले मेरा दम |
कौन हो तुम?
तू शीतल वायु का झोंखा है,
तू टिप-टिप बूंदों की तरंग,
तू भोर की पहली किरण है,
तू इन्द्रधनुष के सातों रंग |
कौन हो तुम?
तू हिरणी सी चपल है,
तू मत्स्य सी नयनों वाली,
तेरी वाणी भी मधुरम है,
जैसे बसंत की वसुंधरा पे,
कोयल कूके हर डाली |
कौन हो तुम?
तू मेरी अन्नपूर्णा,
तू मेरे घर की लक्ष्मी,
तेरा क्रोध काली जैसा,
तू अम्बे तारने वाली |
कौन हो तुम?
मेरे जीवन का सार,
मेरे जीवन की परिभाषा,
तू मेरी अभिलाषा है,
मेरे जीने की अकेली आशा ||
फ़रवरी 12, 2020
खुशी क्या है?
खुशी क्या है?
एक भावना, एक जज़्बात |
सूर्य की किरणों में,
चाँद की शीतलता में,
चिड़ियों की चहचहाट में,
सावन की बरसात में |
किसीकी मुस्कान में छुपी,
किन्ही आँखों में बसी,
कहीं होठों पे खिली,
कभी फूलों से मिली |
मेहनत में कामयाबी में,
गुलामी से आज़ादी में,
हार के बाद जीत में,
जीवन की हर रीत में |
कभी मीठी-मीठी बातों में,
कहीं छुप-छुप के मुलाकातों में,
कभी यारों की बारातों में,
कभी संगी संग रातों में |
पर मेरी खुशी?
तेरा साथ निभाने में,
तेरा हाथ बंटाने में,
बच्चे को खिलाने में,
कभी-कभी गुदगुदाने में,
मेरा जितना भी वक्त है,
तुम दोनों संग बिताने में ||
फ़रवरी 08, 2020
सुहागरात
कजरारे नयनों वाली,
होठों पर गहरी लाली,
माथे पर सिन्दूरी टीका,
कानों में पहने बाली ।
शर्मीले नयनों वाली,
अधरों पर संकुचित वाणी,
श्वास में भय का डेरा,
मन सोचे क्या होगा तेरा,
कर में है दूध का प्याला,
थम-थम कर बढ़ने वाली ।
प्यासे नयनों वाली,
लब पर गहराई लाली,
प्याला अब ख़ाली पड़ा है,
तकिया भी नीचे गिरा है,
श्वासों में तेज़ी बड़ी है,
पिया से मिलन की घड़ी है,
पिया के साथ की खातिर,
धन-मन-तन लुटाने वाली ।।
फ़रवरी 03, 2020
भोर
निशा की अंतिम वेला है,
जगमग-जगमग टिमटिम तारे,
चंद्र लुप्त है, लोप है जीवन,
सुप्त हैं स्वप्नशय्या पर सारे |
सुर्ख रवि की महिमा देखो,
उषा का है हुआ आगमन,
चढ़ते सूर्य की ऊष्मा से,
तिमिर का अब होगा गमन |
पहली किरण के साथ ही,
गूँजे चहुँ ओर मुर्गे की बांग,
कोयल कूके मयूर नाचे,
गिलहरियाँ मारे टहनियों पर छलांग |
गूँज उठे हैं मंदिर में शंख,
पढ़ी जाने मस्ज़िदों में अज़ान,
बजने लगी गिरजाघर की घंटियां,
गुरूद्वारे में गुरुबाणी का गान |
दिनचर निकले स्वप्नलोक से,
निशाचर स्वप्न में समाए,
जीवन जाग्रत होता जगत में,
जब तम पर प्रकाश फ़तेह पाए |
पशु पक्षी सब जीव मनुष्य,
प्रकृति के सारे वरदान,
शीश झुकाकर करें नमन सब,
नभ पर दिनकर शोभायमान ||
जनवरी 29, 2020
बचपन
मासूम चेहरा मुलायम गाल,
छोटी-छोटी आँखें उलझे बाल,
नन्ही उंगलियाँ छोटी सी हथेली,
नन्हे-नन्हे पैर मस्तानी चाल |
कभी करे प्यार कभी मुस्काए,
कभी तो रूठ के दूर भाग जाए,
कभी माँगे मीठा कभी खिलौना,
कभी मेरी गोदी में समाए |
अद्भुत अनोखा चंचल बचपन,
सुख के रंगों में रंगा यह जीवन,
माँ-बाप की आँखों का तारा,
बालक मेरा सबसे प्यारा ||
जनवरी 26, 2020
गणतंत्र दिवस परेड
राजभवन से चला काफ़िला,
जनप्रतिनिधियों को लेकर,
चला वहाँ जहाँ जलती है,
अजर अमर नित्य एक ज्वाला,
जहाँ जीवंत हो उठती है,
वीरों की अगणित गाथा |
शीश झुकाकर किया नमन,
याद किया कुर्बानियों को,
माताओं के बलिदानों को,
यतीमों के रुदानों को,
रणबाँकुरे सेनानियों की स्मृति में,
झुक गया हर शीश हर माथा |
देखो फहराया गया तिरंगा,
गूँज उठा है राष्ट्रगान,
खड़े हुए हैं चहुँ ओर दर्शक,
देने तिरंगे को सम्मान,
गूँज उठी हैं 21 तोपें,
जैसे सिंह वन में गर्जाता |
हुआ शूरवीरों का सम्मान,
कईयों का जीते-जी कुछ का मरणोपरांत,
पर जीवित रहता है इनसे ही,
हम देशवासियों का अभिमान,
जीवित रहेंगे ये वीर भी तब तक,
जब तक इनकी वीरगाथा जन-जन है सुनाता |
देखो देखो सेना आई,
सैन्यशक्ति पथ पर दर्शायी,
थल-जल-वायु का यह मेला,
जन-जन का वक्ष गर्व से सुजाता,
पर चार चाँद लगाने इस दल को,
देखो ऊंटों का दस्ता आता |
सजी झांकियां सजे बहु जन हैं,
हुआ इनपर व्यय बहु धन है,
फिर भी लूटा इनने सबका मन है,
शोभायमान इन झांकियों से,
राजपथ पर बस इक दिन,
संपूर्ण भारतवर्ष है छा जाता |
देखो वीर बालक आए,
गजराज पथ पर हैं छाए,
कुछ साहसी मानवों ने,
मोटर-साइकिल पर करतब दिखाए,
गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर,
गौरवान्वित होती भारतमाता ||
जनवरी 24, 2020
उफ़ यह अदा
लचकाती कमर,
मृगनयनी नयन,
झूलती लटें,
सकुचाता बदन |
प्यासे अधर,
लल्साती मुस्कान,
सुशोभित हैं तन पर,
कौमार्य के सारे वरदान |
उफ़ यह अदा,
उफ़ यह बदन,
चाहे मेरा दिल,
पाना तेरी छुअन ||
जनवरी 20, 2020
माया
धन की क्या आवश्यकता है? धन सिर्फ एक छलावा है | मोह है | माया है | सत्य की परछाईं मात्र है, जो सिर्फ अंधकार में दिखाई पड़ती है | उजाले में इसका कोई अस्तित्व नहीं | धन सब परेशानियों की जड़ है | सब अपराधों की जननी है | सब व्यसनों का आरम्भ है |
कुदरत ने सब जीव बनाए,
पशु पक्षी मत्स्य तरु,
जल भूमि गिरी आकाश,
कंद मूल फल फूल खिलाए,
अंधकार से दिया प्रकाश ||
पर मनुष्य, तूने क्या दिया?
लोभ मोह दंभ अहंकार,
भेदभाव ऊँच-नीच तकरार !
धन को सर्वोपरि बनाया,
धनी निर्धन में भेद कराया,
माया के इस पाश में फंसकर,
कुदरत को तू समझ न पाया ||
जनवरी 19, 2020
जीवन
जी ना चाहे जीना,
पर जीवन पड़ेगा जीना,
जीवन एक इंतज़ार है,
मृत्यु सत्य साकार है,
उस दिन का इंतज़ार है,
जब चढूँगा मौत का जीना ||
जनवरी 17, 2020
प्रेम
प्रेम से आनंद है,
प्रेम से ही है खुशी,
प्रेम से जीवन है,
प्रेम से है सुख की हंसी |
प्रेम नहीं तो क्या है,
क्रोध स्वार्थ अहंकार,
गर प्रेम मिट जाए कहीं,
तो छा जाता है अंधकार |
तू प्रेम भाव से देख ले,
तो छा जाती है रौशनी,
तू प्रेम भाव से बोल दे,
तो मिट जाए सारे गुबार ||
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