भोर
हिंदी कविता Hindi Kavita भोर Bhorनिशा की अंतिम वेला है,
जगमग-जगमग टिमटिम तारे,
चंद्र लुप्त है, लोप है जीवन,
सुप्त हैं स्वप्नशय्या पर सारे |
सुर्ख रवि की महिमा देखो,
उषा का है हुआ आगमन,
चढ़ते सूर्य की ऊष्मा से,
तिमिर का अब होगा गमन |
पहली किरण के साथ ही,
गूँजे चहुँ ओर मुर्गे की बांग,
कोयल कूके मयूर नाचे,
गिलहरियाँ मारे टहनियों पर छलांग |
गूँज उठे हैं मंदिर में शंख,
पढ़ी जाने मस्ज़िदों में अज़ान,
बजने लगी गिरजाघर की घंटियां,
गुरूद्वारे में गुरुबाणी का गान |
दिनचर निकले स्वप्नलोक से,
निशाचर स्वप्न में समाए,
जीवन जाग्रत होता जगत में,
जब तम पर प्रकाश फ़तेह पाए |
पशु पक्षी सब जीव मनुष्य,
प्रकृति के सारे वरदान,
शीश झुकाकर करें नमन सब,
नभ पर दिनकर शोभायमान ||
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