जुलाई 17, 2020

वर्षाऋतु

हिंदी कविता Hindi Kavita वर्षाऋतु Varsharitu

रिमझिम-रिमझिम टिप-टिप-टिप-टिप,


नभ से उतरे जीवन-अमृत,


घुमड़-घुमड़ उमड़-घुमड़ तड़-तड़,


श्यामिल घटा गरजे बढ़चढ़,


शुष्क धरा की मिटी पिपासा,


हरी ओढ़नी रूप नया सा,


पंख फैलाए, नाच दिखाए,


बागों में मोर इठलाए,


सावन के झूले लहराएं,


नभ के पार ये जाना चाहें,


सतरंगी पौढ़ी से उतरकर,


वैकुण्ठ खुद थल पर आए ||

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