मार्च 14, 2021

मैं हँसना भूल गया

हिंदी कविता Hindi Kavita मैं हँसना भूल गया Main hasna bhool gaya

जब बचपन के मेरे बंधु ने,


चिर विश्वास के तंतु ने,


पीछे से खंजर मार कर,


मेरा भरोसा तोड़ दिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब मेरे दफ़्तर में ऊँचे,


पद पर आसीन साहब ने,


मेरे श्रम को अनदेखा कर,


चमचों से नाता जोड़ लिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब जन्मों के मेरे साथी ने,


सुख और दुःख के हमराही ने,


दुःख के लम्हों को आता देख,


साथ निभाना छोड़ दिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब वर्षों तक सींचे पौधे ने,


उस मेरे अपने बालक ने,


छोटी-छोटी सी बातों पर,


मेरा भर-भर अपमान किया,


मैं हँसना भूल गया |



जिसकी गोदी में रहता था,


जब उस प्यारे से चेहरे ने,


मेरी लाई साड़ी को छोड़,


श्वेत कफ़न ओढ़ लिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब मंज़िल की ओर अग्रसर,


पहले से मुश्किल राहों को,


नियति की कुटिल चाल ने,


हर-हर बार मरोड़ दिया,


मैं हँसना भूल गया |

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