मई 01, 2021

गंतव्यपथ

हिंदी कविता Hindi Kavita गंतव्यपथ Gantavyapath


बढ़ते-बढ़ते जब खुद को तुम,


भटका हुआ पाओगे,


अंधियारे में मंज़िल की,


राहों से खो जाओगे,


हालातों से हारकर जब तुम,


बस रुकना चाहोगे |



हिम्मत को अपनी बाँध बस तुम,


आगे बढ़ते जाना,


लक्ष्य की सिद्धी से पहले,


खुद-ब-खुद मत रुक जाना,


क्या मालूम दो पग आगे ही,


लिखा हो मंज़िल पाना ||

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