जून 25, 2021

बुझने से पहले ज्वाला भड़के

हिंदी कविता Hindi Kavita बुझने से पहले ज्वाला भड़के Bujhne se pehle Jwala bhadke

सूरज की अलौकिक राहों में,


अंतिम डग से थोड़ा पहले,


जब पग-पग बढ़ता राही भी,


तरु छाया में थोड़ा ठहरे,


ऊष्मा की चुभन सर्वाधिक है,


बुझने से पहले ज्वाला भड़के |



दीपक के लघुतम जीवन में,


अंधियारे से थोड़ा पहले,


जब अंतिम चंद बूँदों से,


बाती के रेशे होते सुनहरे,


ज्योति की जगमग सर्वाधिक है,


बुझने से पहले ज्वाला भड़के |



ऋतुओं के निरंतर फेरे में,


बसंती बयारों के पहले,


कोहरे के घने कंबल में,


जब दिन में भी दिनकर ना दीखे,


शिशिर की शीतलता सर्वाधिक है,


बुझने से पहले ज्वाला भड़के |



किसी मृदु-मनोहारी मंचन में,


पटाक्षेप से थोड़ा पहले,


जब उन्मुक्त निमग्न रंगकर्मी,


रहस्य की परतों को खोले,


दर्शक का रोमांच सर्वाधिक है,


बुझने से पहले ज्वाला भड़के |



गंतव्यपथ पर चलते-चलते,


शिखर छूने से थोड़ा पहले,


ध्येय को तलाशती राहों पर,


जब दृढ़-संकल्प भी डोले,


राह की जटिलता सर्वाधिक है,


बुझने से पहले ज्वाला भड़के |



जीवन की अनूठी यात्रा के,


समापन से थोड़ा पहले,


जब तन से रूह का बंधन भी,


झीनी सी डोरी से ही झूले,


जीने की चाह सर्वाधिक है,


बुझने से पहले ज्वाला भड़के ||

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