जून 18, 2021

मुझको मंज़ूर नहीं

हिंदी कविता Hindi Kavita मुझको मंज़ूर नहीं Mujhko manzoor nahin

धन के बल पर ग्रह का दोहन,


और अतिरेक मानवों का शोषण,


जन से जन का यह विभाजन,


मुझको मंज़ूर नहीं |



बढ़ना जीवनपथ पर तनहा,


परस्पर बैरी, कटुता, घृणा,


मन से मन का यह विभाजन,


मुझको मंज़ूर नहीं |



इकतरफ़ा चाहत की सनक,


अप्राप्य को पाने की तड़प,


सच से मन का यह विभाजन,


मुझको मंज़ूर नहीं |



कट्टरता का विषपूर्ण भुजंग,


अपने ही मत में मदहोश मलंग,


बुद्धि से नर का यह विभाजन,


मुझको मंज़ूर नहीं |



स्त्री की इच्छाओं का दमन,


पुरुष का नाजायज़ अहम,


नर से नारी का यह विभाजन,


मुझको मंज़ूर नहीं |



अलग ही दुनिया में जीना,


संग होकर संग में ना होना,


तुम से मेरा यह विभाजन,


मुझको मंज़ूर नहीं ||

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