Mann Ke Bhaav offers a vast collection of Hindi Kavitayen. Read Kavita on Nature, sports, motivation, and more. Our हिंदी कविताएं, Poem, and Shayari are available online!
अगस्त 23, 2023
जुलाई 22, 2023
खुशियों के छींटे
कभी अंधेरी रात में,
बादल बिन आकाश में,
सर को उठाकर देखा है ?
काले-कोरे से कैनवस पर,
कुछ उजले-उजले छींटे हैं,
मानो बैठा कोई चित्रकार,
रंगते-रंगते उजला संसार,
रचना अधूरी भूल गया !
निराशा के अनन्त अंधियारे में,
खुशियों के रंग भरने थे,
लेकिन बस छींटे छोड़ गया |
काली अंधेरी रात में,
बस छींटों के प्रकाश में,
तिमिर को साथी मानकर,
अस्तित्व का अवयव जानकर,
बेफ़िक्र बढ़ता जाता हूँ |||
जुलाई 04, 2023
बहुत दिनों बाद
बहुत दिनों बाद ऐसी सुबह आई है,
ना रंज है, ना गम है, ना रुसवाई है,
काली लंबी अंधेरी रात हमने बिताई है,
आशा की तपन ने हर पीड़ा मिटाई है ||
जून 08, 2023
यकीन
ज़िंदगी के अफ़साने में राहों की कमी नहीं,
इक कदम यकीन से ज़रा उठा के देखिए ||
मई 14, 2023
मातृ दिवस 2023
दादा कहते हैं अब मुझको,
लाठी लेकर चलता हूँ,
तेरे आँचल को माँ अब भी,
बच्चे सा मचलता हूँ |||
मई 07, 2023
प्रेरक अल्फाज़
हमने हवाओं में बहना नहीं, हवाओं सा बहना सीखा है,
हमने तकदीरों से लड़ना नहीं, तकदीरें बदलना सीखा है ||
मई 02, 2023
भूरे पत्ते
डाली से टूटकर,
जीवन से छूटकर,
अंतिम क्षणों में सूखे पत्ते ने सोचा –
मैंने क्या खोया ? क्या पाया ?
अहम को क्यों था अपनाया ?
भूरा होकर अब जाता हूँ,
भूरा ही तो मैं था आया !!!
अप्रैल 08, 2023
कितने सुंदर होते हैं फ़ूल !
कितने सुंदर होते हैं फ़ूल !
रंगों भरे,
आशाओं भरे,
केवल खुशियाँ देते हैं,
औरों की ख़ातिर जीते हैं,
परिवेश को महकाकर,
चुपके से गुम हो जाते हैं |||
मार्च 31, 2023
उपवन
रोज़ की घुड़दौड़ से, थोड़ा समय बचाकर,
व्यर्थ की आपाधापी से, नज़रें ज़रा चुराकर,
इक दिन फुर्सत पाकर मैं, इक उपवन को चला |
मंद शीतल वायु थी वहाँ खुशबू से भरी,
क्यारियों में सज रही थीं फ़ूलों की लड़ी,
कदम-कदम पर सूखे पत्ते चरचराते थे,
डाली-डाली नभचर बैठे चहचहाते थे,
जब भी पवन का हल्का सा झोंका आता था,
रंगबिरंगा तरुवर पुष्पों को बरसाता था,
कोंपलों ने नवजीवन का गीत सुनाया,
भंवरों की गुंजन ने पीड़ित चित्त को बहलाया |
रोज़ की आपाधापी से मुझे फुर्सत की दरकार क्यों ?
जीवन में ले आता हूँ मैं पतझड़ की बयार क्यों ?
भीतर झाँका पाया सदा मन-उपवन में बहार है |||
मार्च 23, 2023
बहार
मृत गोचर हो रहे पादपों पर,
कोंपलों की सज रही कतारें हैं,
अलसुबह शबनमी उपवनों में,
भ्रमरों की सुमधुर गुंजारें हैं,
मंद-मंद लहलहाती कलियों से,
गुलशनों में छा रही गुलज़ारें हैं,
टहनियों पर चहचहाते पंछी कहें,
देखो-देखो आ गई बहारें हैं |||
मार्च 08, 2023
नारी के नाना रंग
कभी शक्ति का रंग,
कभी सेवा का,
कभी भगिनी का रंग,
कभी भार्या का,
कभी सुता का,
कभी माता का,
कभी प्रेम का,
कभी क्रोध का,
कभी जीत का,
कभी हार का,
कभी धीरज का,
कभी बेसब्री का,
कभी आज़ादी का,
कभी दासता का,
कभी देवी का,
कभी मजबूरी का,
होली में उल्लास के उड़ते नाना रंगों से भी,
ज़्यादा रंगों से रंगा अस्तित्व है नारी का |||
मार्च 04, 2023
बसंत
सुंदर सुमनों की सुगंध समीर में समाई है,
बैकुंठी बयार बही है, बसंती ऋतु आई है ||
फ़रवरी 23, 2023
तुम
मेरा सूरज तुम मेरा चाँद हो तुम,
मेरी सुबह से लेकर शाम हो तुम,
मेरी पूजा तुम अज़ान हो तुम,
मेरी साँसें धड़कन जान हो तुम ||
दिल
लंबे जीवन की ख़ातिर अपने दिल का ख्याल रखो,
दिल की सेहत की ख़ातिर दिलबर का ख्याल रखो ||
बेवजह
ना जीने की चाह है,
ना ज़िन्दों की परवाह है,
बस साँसें हैं, धड़कन है,
जीवन, बेवजह है ||
अश्क
अपने अश्कों को जानम,
तुम यूँ ही ना बहने दो,
ये अनमोल मोती हैं,
नयन सागर में रहने दो ||
सॉरी
हाँ मैं गलती करता हूँ,
तुमसे मैं अक्सर लड़ता हूँ,
पर क्या यह भी झूठ है,
तुमपे ही तो मैं मरता हूँ !!!
तेरी बाँहें
खिल रहे हों फूल जैसे इक उजड़ी सी बगिया में,
बरस पड़ा हो प्रताप जैसे इक सूखी सी नदिया पे,
टपक रहीं हों बूँदें जैसे शुष्क दरकती वसुधा पे,
पड़ रही हो छाया जैसे एक थके मुसाफिर पे,
अनुभव ऐसा होता मुझको तेरी बाँहों के घेरे में ||
उम्मीद
गलती मेरी थी जो मैंने तुझसे कुछ उम्मीद की,
उसको पूरा करने की तुझसे मैंने ताकीद की ||
तेरा आशिक हूँ
तेरा आशिक हूँ,
मैं तेरा साथ निभाऊंगा,
गर तू बसेगी काँटों में,
मैं भँवरा वहीं मंडराऊंगा ||
वो पहला पहला प्यार
वो पहला-पहला प्यार,
वो छुप-छुप के दीदार,
वो मन ही मन इकरार,
वो कहने के विचार,
वो सकुचाना हर बार,
फिर आजीवन इंतज़ार ||
फ़रवरी 03, 2023
तेरी मुस्कान
सहस्त्र पुष्पों से सुंदर है,
तेरी मुस्कान |
बरखा की बूंदों सी निर्मल है,
तेरी मुस्कान |
कभी संकट का बिगुल है,
तेरी मुस्कान |
कभी खुशियों की लहर है,
तेरी मुस्कान |
नन्हे बालक सी चंचल है,
तेरी मुस्कान |
दिल की पीड़ा का हरण है,
तेरी मुस्कान |
मुश्किल दिनों का तारण है,
तेरी मुस्कान |
हताशा में आशा की किरण है,
तेरी मुस्कान |
बढ़ते कदमों की ताकत है,
तेरी मुस्कान |
मेरी सुबह का सूरज है,
तेरी मुस्कान ||
फ़रवरी 01, 2023
नज़रें
लब चाहे कुछ भी ना बोलें,
नज़रें सबकुछ कह देती हैं,
दिल के राज़ भले ना खोलें,
आँखें दर्द बयाँ करती हैं ||
जनवरी 30, 2023
चाँद और रजनी की प्रेम कहानी
चाँद ने रजनी से कहा –
मैं उजला श्वेत सलोना सा,
तू काली स्याह कुरूपनी,
मैं प्रेम का रूपक हूँ,
तू अँधियारे की दासिनी,
अपनी कौमुदी को मैं तुझ,
तमस्विनी पर क्यों बरसाऊं?
मैं भोर के प्रेम में रत हूँ,
निशा को क्यों मैं अपनाऊं?
रजनी ने चंदा से कहा –
तू दिनकर की आभा से प्रोत,
दंभ से क्यों इतराता है?
तू बदलाव का रूपक है,
प्रभात को तू ना भाता है,
ऊषा को भास्कर का वर है,
मैं श्रापित तन्हा कलंकिनी,
अपनी कांति मुझपर बरसा,
मैं तेरे प्यार की प्यासिनी ||
जनवरी 24, 2023
चौपाल का बरगद
दादा मेरे कहते थे –
जब गाँव में सड़कें ना थीं,
ना पानी था ना बिजली थी,
तब भी गुमसुम इन राहों पर,
गाँव के बीच चौपाल पर,
एक अतिविशाल बरगद था |
बरगद की शीतल छाया में,
पंचायत बैठा करती थी,
गाँव समाया करता था,
बच्चे भी खेला करते थे,
सावन में झूले सजते थे,
हलचल का केंद्र वो बरगद था |
बरगद की असंख्य भुजाओं पर,
कोयलें कूका करती थीं,
गिलहरियाँ फुदकतीं थीं,
मुसाफ़िर छाया पाते थे,
दिन में वहीं सुस्ताते थे,
जटाओं भरा वो बरगद था |
गाँव में अब मैं रहता हूँ,
लकड़ी लेकर मैं चलता हूँ,
गुमसुम सी उन्हीं राहों पर,
गाँव के बीच चौपाल पर,
पोते को अपने कहता हूँ –
देखो यह वो ही बरगद है ||
जनवरी 01, 2023
2023 का स्वागत
नूतन रवि उदित हुआ है,
समस्त तमस मिटाने को,
हठ से कदम बढ़ाने को,
मंज़िल तक बढ़ते जाने को ||
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