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जनवरी 24, 2024
अगस्त 23, 2023
चंद्रयान 3 की कामयाबी
रोशन ये रात है,
अँधेरा गुमशुदा है,
भारत की प्रगति का सूर्य
चाँद पर जो उगा है ||
जुलाई 22, 2023
खुशियों के छींटे
कभी अंधेरी रात में,
बादल बिन आकाश में,
सर को उठाकर देखा है ?
काले-कोरे से कैनवस पर,
कुछ उजले-उजले छींटे हैं,
मानो बैठा कोई चित्रकार,
रंगते-रंगते उजला संसार,
रचना अधूरी भूल गया !
निराशा के अनन्त अंधियारे में,
खुशियों के रंग भरने थे,
लेकिन बस छींटे छोड़ गया |
काली अंधेरी रात में,
बस छींटों के प्रकाश में,
तिमिर को साथी मानकर,
अस्तित्व का अवयव जानकर,
बेफ़िक्र बढ़ता जाता हूँ |||
जुलाई 04, 2023
बहुत दिनों बाद
बहुत दिनों बाद ऐसी सुबह आई है,
ना रंज है, ना गम है, ना रुसवाई है,
काली लंबी अंधेरी रात हमने बिताई है,
आशा की तपन ने हर पीड़ा मिटाई है ||
जून 08, 2023
यकीन
ज़िंदगी के अफ़साने में राहों की कमी नहीं,
इक कदम यकीन से ज़रा उठा के देखिए ||
मई 07, 2023
प्रेरक अल्फाज़
हमने हवाओं में बहना नहीं, हवाओं सा बहना सीखा है,
हमने तकदीरों से लड़ना नहीं, तकदीरें बदलना सीखा है ||
मई 02, 2023
भूरे पत्ते
डाली से टूटकर,
जीवन से छूटकर,
अंतिम क्षणों में सूखे पत्ते ने सोचा –
मैंने क्या खोया ? क्या पाया ?
अहम को क्यों था अपनाया ?
भूरा होकर अब जाता हूँ,
भूरा ही तो मैं था आया !!!
अप्रैल 08, 2023
कितने सुंदर होते हैं फ़ूल !
कितने सुंदर होते हैं फ़ूल !
रंगों भरे,
आशाओं भरे,
केवल खुशियाँ देते हैं,
औरों की ख़ातिर जीते हैं,
परिवेश को महकाकर,
चुपके से गुम हो जाते हैं |||
मार्च 31, 2023
उपवन
रोज़ की घुड़दौड़ से, थोड़ा समय बचाकर,
व्यर्थ की आपाधापी से, नज़रें ज़रा चुराकर,
इक दिन फुर्सत पाकर मैं, इक उपवन को चला |
मंद शीतल वायु थी वहाँ खुशबू से भरी,
क्यारियों में सज रही थीं फ़ूलों की लड़ी,
कदम-कदम पर सूखे पत्ते चरचराते थे,
डाली-डाली नभचर बैठे चहचहाते थे,
जब भी पवन का हल्का सा झोंका आता था,
रंगबिरंगा तरुवर पुष्पों को बरसाता था,
कोंपलों ने नवजीवन का गीत सुनाया,
भंवरों की गुंजन ने पीड़ित चित्त को बहलाया |
रोज़ की आपाधापी से मुझे फुर्सत की दरकार क्यों ?
जीवन में ले आता हूँ मैं पतझड़ की बयार क्यों ?
भीतर झाँका पाया सदा मन-उपवन में बहार है |||
मार्च 23, 2023
बहार
मृत गोचर हो रहे पादपों पर,
कोंपलों की सज रही कतारें हैं,
अलसुबह शबनमी उपवनों में,
भ्रमरों की सुमधुर गुंजारें हैं,
मंद-मंद लहलहाती कलियों से,
गुलशनों में छा रही गुलज़ारें हैं,
टहनियों पर चहचहाते पंछी कहें,
देखो-देखो आ गई बहारें हैं |||
मार्च 08, 2023
नारी के नाना रंग
कभी शक्ति का रंग,
कभी सेवा का,
कभी भगिनी का रंग,
कभी भार्या का,
कभी सुता का,
कभी माता का,
कभी प्रेम का,
कभी क्रोध का,
कभी जीत का,
कभी हार का,
कभी धीरज का,
कभी बेसब्री का,
कभी आज़ादी का,
कभी दासता का,
कभी देवी का,
कभी मजबूरी का,
होली में उल्लास के उड़ते नाना रंगों से भी,
ज़्यादा रंगों से रंगा अस्तित्व है नारी का |||
मार्च 04, 2023
बसंत
सुंदर सुमनों की सुगंध समीर में समाई है,
बैकुंठी बयार बही है, बसंती ऋतु आई है ||
जनवरी 01, 2023
2023 का स्वागत
नूतन रवि उदित हुआ है,
समस्त तमस मिटाने को,
हठ से कदम बढ़ाने को,
मंज़िल तक बढ़ते जाने को ||
दिसंबर 09, 2022
धारा का पेड़
एक बार मैंने देखा
बरसाती नदी के बहाव में
एक पेड़ खड़ा था,
जैसे कुरुक्षेत्र की भूमि पर
अपने नातेदारों से
अभिमन्यु लड़ा था |
विपरीत परिस्तिथियों से
धारा के प्रचंड प्रवाह से
किंचित न डरा था,
घोंसले में बैठे चंद
पंछियों को बारिश से
वो अकेला आसरा था |
विपत्तियों की बाढ़ में
टूट कर बिखरा नहीं
अपितु अधिक हरा था,
अगले साल मैंने देखा
सावन के महीने में फ़िर
वो पेड़, वहीं खड़ा था ||
नवंबर 26, 2022
कुछ तो कहते हैं ये पत्ते
बरखा की बूंदों सरीख,
बयार में जब ये बहते,
कल डाली से बंधे थे,
आज कूड़े के ढेर में रहते |
पतझड़ की हवाओं में,
बसंत का एहसास बनते,
कोंपल रूप में फिर आयेंगे,
नवारम्भ की गाथा कहते ||
नवंबर 20, 2022
जीवनमंत्र
हँसते रहने की खातिर ही मैं यह जीवन जीता हूँ,
ज़िंदा रहने की खातिर ही थोड़ा-थोड़ा हँसता हूँ ||
नवंबर 14, 2022
जब हम छोटे बच्चे थे
जब हम छोटे बच्चे थे,
मम्मी-मम्मी करते थे,
साईकल पर निकलते थे,
अक्सर झगड़ा करते थे,
थोड़ा-थोड़ा पढ़ते थे,
अधिक शरारत करते थे,
पापा से बड़ा डरते थे,
तितली पकड़ा करते थे,
बिन पंखों के उड़ते थे,
जब हम छोटे बच्चे थे ||
अक्टूबर 11, 2022
जय महाकाल
हाथ में डमरू कंठ भुजंग, अर्धचंद्र बिराजे भाल,
जय शिव-शम्भू जय महेश, जय जय जय श्री महाकाल ||
अगस्त 26, 2022
जीवन की किताब
इक दिन फुर्सत के क्षणों में,
तन्हा-तन्हा से पलों में,
मैंने मन में झाँककर,
जीवन की किताब खोली |
पहले पन्ने पर दर्ज था,
बड़ा-बड़ा सा अर्ज़ था,
मेरा परिचय, मेरी पहचान,
माँ-बाबा का दिया वो नाम,
जो जीवन का अंग था,
हर किस्से के संग था |
पन्ना-पन्ना मैं बढ़ता गया,
किस्से-कथाएं पढ़ता गया,
कुछ अफ़साने खुशी के थे,
कुछ नीरस से दुःखी से थे,
थोड़ी आशा-निराशा थीं,
कुछ अधूरी अभिलाषा थीं,
कहीं जीत थी कहीं हार थी,
कहीं किस्मत की पतवार थी,
कभी बरखा थी बहार थी,
कभी पतझड़ की बयार थी |
एक विपदाओं की बाढ़ थी,
और ओलों की बौछार थी,
रस्ते पर खड़ी दीवार थी,
लेकिन संग में तलवार थी,
श्रम-संयम जिसकी धार थी,
फ़िर पल में नौका पार थी,
कुछ लाभ था कुछ हानि थी,
ऐसी ढेरों कहानी थीं |
अंतिम कुछ पन्ने कोरे थे,
ना ज़्यादा थे ना थोड़े थे,
कुछ मीठे पल अभी जीने हैं,
कुछ कड़वे घूँट भी पीने हैं,
मैंने कल में झाँककर,
यादों की झोली टटोली ||
अगस्त 13, 2022
ऐ वतन, तेरे लिए
मस्तक की बूंदों से मैंने,
सींची है तेरी ज़मीन,
मस्तक की सारी बूँदें हैं,
ऐ वतन, तेरे लिए |
लहू की बूंदों से मैंने,
खींची है तेरी सरहद,
रक्त का अंतिम कतरा भी,
ऐ वतन, तेरे लिए |
माथे की लाली को मैंने,
किया तुझपर कुर्बान,
कोख का बालक भी मेरा,
ऐ वतन, तेरे लिए |
वक्त के लम्हों को मैंने,
तेरी सेवा में बिताया,
हर पल हर श्वास मेरी,
ऐ वतन, तेरे लिए ||
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