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मई 14, 2023
नवंबर 14, 2022
जब हम छोटे बच्चे थे
जब हम छोटे बच्चे थे,
मम्मी-मम्मी करते थे,
साईकल पर निकलते थे,
अक्सर झगड़ा करते थे,
थोड़ा-थोड़ा पढ़ते थे,
अधिक शरारत करते थे,
पापा से बड़ा डरते थे,
तितली पकड़ा करते थे,
बिन पंखों के उड़ते थे,
जब हम छोटे बच्चे थे ||
अक्टूबर 24, 2022
बचपन वाली दीवाली
वो चढ़-चढ़कर घर से सारे जालों को मिटाना,
वो पंखों की, कोनों-कोनों की धूल को हटाना,
वो आँगन में नाना रंगों से रंगोली सजाना,
वो दीवारों-दरवाज़ों पर रंग-रोगन कराना,
बाज़ारों से धनतेरस पर नया बर्तन ले आना,
वो मिठाई वो बताशे वो खील वो खिलौना,
वो छत पर रंगीन बल्बों की लड़ियाँ लगाना,
वो मोमबत्ती और दीपों से पूरे घर को सजाना,
वो नए-नए कपड़ों में पूजा कर प्रसाद चढ़ाना,
वो पटाखों की थैली के संग बाहर भाग जाना,
वो फुलझड़ी वो अनार वो रॉकेट वो चरखरी,
वो आलू बम, वो फूँक बम, वो मुर्गे की लड़ी,
खुशियों से भरपूर थी बचपन की हर दीवाली,
आओ मनाएँ फ़िर से वो ही बचपन वाली दीवाली ||
अगस्त 11, 2022
राखी
रेशम की डोर नहीं,
प्रेम का धागा है राखी,
कष्टों में भी साथ का,
आजीवन वादा है राखी ||
मई 08, 2022
माँ
माँ तो देखो माँ होती है,
बच्चों की दुनिया होती है,
खुदा की रहमत होती है,
धरती पर जन्नत होती है,
माँ तो देखो माँ होती है ||
फ़रवरी 20, 2022
सरहद
हवा के झोकों में लहराती फसलों के बीच में,
अपनी मेहनत के पसीने से धरती को सींच के,
सूरज की तपती किरणों से आँखों को भींच के,
बचपन के अपने यार को उसके खेत से आते देखा |
कंधे पर उसके झोला था माथे पर मेहनत के निशान,
कपड़ों पर उसके मिट्टी थी मेरे ही कपड़ों के समान,
मेरी दिशा में अपनी बूढ़ी गर्दन को मोड़ के,
मेरी छवि को देख उसके चेहरे को मुरझाते देखा |
मैं पेड़ों के ऊपर चढ़ता वो नीचे फ़ल पकड़ता था,
मास्टर की मोटी बेंत से मेरे जितना वो डरता था,
जाने कितनी ही रातों को टूटे-फूटे से खाट पर,
बचपन में असंख्य तारों को हमने झपकते देखा |
वो नहरों में नहाना संग में बैठ कर खाना,
इक-दूजे के घर में सारा-सारा दिन बिताना,
छोटी-छोटी सी बातों पर कभी-कभी लड़ जाना,
बचपन की मीठी यादों को नज़रों में मंडराते देखा |
बस यादों में ही संग हैं, दूरी हममें अब हरदम है,
चंद क़दमों का है फ़ासला पर मिलना अब ना संभव है,
अपनी खेतों की सीमा से सटे लोहे के स्तंभ पर,
क्षितिज तक सरहद के बाड़े को हमने जाते देखा ||
जुलाई 17, 2021
लालबत्ती
अपनी मोटर के कोमल गद्देदार सिंहासन पर,
शीतल वायु के झोकों में अहम से विराजकर,
खिड़की के बाहर तपती-चुभती धूप में झाँककर,
मैंने एक नन्हे से बालक को अपनी ओर आते देखा |
पैरों में टूटी चप्पल थी तन पर चिथड़ों के अवशेष,
मस्तक पर असंख्य बूँदें थीं लब पर दरारों के संकेत,
उसके हाथों में एक मोटे-लंबे से बाँस पर,
मैंने सतरंगी गुब्बारों को पवन में लहराते देखा |
मेरी मोटर की खिड़की से अंदर को झाँककर,
मेरी संतति की आँखों में लोभ को भाँपकर,
आशा से मेरी खिड़की पर ऊँगली से मारकर,
उसके अधरों की दरारों को मैंने गहराते देखा |
कष्टों से दूर अपनी माता के दामन को थामकर,
अपने बाबा के हाथों से एक फुग्गे को छीनकर,
जीवन को गुड्डे-गुड़ियों का खेल भर मानकर,
अपने बच्चे के चेहरे पर खुशियों को मंडराते देखा |
चंद सिक्कों को अपनी छोटी सी झोली में बाँधकर,
खुद खेलने की उम्र में पूरे कुनबे को पालकर,
दरिद्रता के अभिशाप से बचपन को ना जानकर,
अपने बीते कल को अगली मोटर तक जाते देखा ||
जून 29, 2021
बचपन
वो बेफिक्री, वो मस्ती और वो नादानी,
वो शेरों की चिड़ियों-परियों की कहानी,
वो सड़कों पर कल-कल बहता बरखा का पानी,
उसमें तैराने को कागज़ की कश्ती बनानी,
वो चुपके से पैसे देती दादी-नानी,
वो आँचल की गहरी निद्रा सुहानी,
वो यारों संग धूप में साईकिल दौड़ानी,
वो बागों में मटरगश्ती और शैतानी,
वो दौर था जब खुशियों की सीमाएं थीं अनजानी,
वो दौर था जब हमने जग की सच्चाईयाँ थीं ना जानी,
ये कैसा एकांत लेकर आई है जवानी,
इससे तो बेहतर थी बचपन की नादानी ||
फ़रवरी 13, 2021
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
ना मैं भक्त हूँ, ना ही आंदोलनजीवी, ना ही किसी और गुट का सदस्य । मेरी मंशा किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की नहीं है । बस कुनबापरस्ती पर एक व्यंग है । पढ़ें और आनन्द लें । ज़्यादा ना सोचें ।
अचकन पर गुलाब सजाना,
बच्चों का चाचा कहलाना,
सहयोगियों संग मिलजुल कर,
तिनकों से इक राष्ट्र बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
वैरी को धूल चटाना,
दुर्गा सदृश कहलाना,
अभूतपूर्व पराजय से उबरकर,
फिर एक बार सरकार बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
युवावस्था में पद संभालना,
उत्तरदायित्व से ना सकुचाना,
बाघों से सीधे टकराना,
डिज़िटाइज़ेशन की नींव रख जाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
मन की आवाज़ सुन पाना,
सर्वोच्च पद को ठुकराना,
तूफानी समंदर की लहरों में,
डूबती कश्ती को चलाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
कड़े-कठोर निर्णय ले पाना,
पर-सिद्धि को अपना बताना,
शत्रु की मांद में घुसकर,
शत्रु का संहार कराना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
जनमानस का नेता बन जाना,
भविष्य का विकल्प कहलाना,
लिखा हुआ भाषण दोहराना,
अरे आलू से सोना बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
अक्टूबर 21, 2020
कुछ अधूरी ख्वाहिशें
वो चेहरा एक सलोना सा,
जो ख़्वाबों में, विचारों में,
अक्सर ज़ाहिर हो जाता है |
जिसको चाहा है उम्रभर,
उसकी यादों के भंवर में,
मन मेरा बस खो जाता है ||
वो शौक एक अनूठा सा,
जिसमें बीता हर इक पल,
मेरे तन-मन को भाता है |
रोज़ी-रोटी के फेर में,
बरबस बीते यह ज़िंदगी,
वक्त थोड़ा मिल ना पाता है ||
वो दामन एक न्यारा सा,
जो बचपन की हर कठिनाई,
का अक्षुण्ण हल कहलाता है |
बेवक्त छूटा था वह साथ,
कह ना पाया था मैं जो बात,
कहने को दिल ललचाता है ||
वो स्वप्न एक प्यारा सा,
जो मन की गहराइयों में,
स्थाई स्थान बनाता है |
भरसक प्रयत्न करके भी,
वह सपना यथार्थ में,
परिवर्तित हो ना पाता है |
वो शोक एक भारी सा,
रह-रहकर चित्त की देह को,
पश्चाताप की टीस चुभोता है |
पृथ्वी की चाल, बहती पवन,
शब्दों के बाण, बीता कल,
पलटना किसको आता है ??
वो भाग्य एक कठोर सा,
कर्मठ मानव के कर्म का,
फल देने से कतराता है |
अपेक्षाओं के ख़ुमार में,
माया के अद्भुत खेल में,
मूर्छित मानव मुस्काता है ||
फ़रवरी 12, 2020
खुशी क्या है?
खुशी क्या है?
एक भावना, एक जज़्बात |
सूर्य की किरणों में,
चाँद की शीतलता में,
चिड़ियों की चहचहाट में,
सावन की बरसात में |
किसीकी मुस्कान में छुपी,
किन्ही आँखों में बसी,
कहीं होठों पे खिली,
कभी फूलों से मिली |
मेहनत में कामयाबी में,
गुलामी से आज़ादी में,
हार के बाद जीत में,
जीवन की हर रीत में |
कभी मीठी-मीठी बातों में,
कहीं छुप-छुप के मुलाकातों में,
कभी यारों की बारातों में,
कभी संगी संग रातों में |
पर मेरी खुशी?
तेरा साथ निभाने में,
तेरा हाथ बंटाने में,
बच्चे को खिलाने में,
कभी-कभी गुदगुदाने में,
मेरा जितना भी वक्त है,
तुम दोनों संग बिताने में ||
जनवरी 29, 2020
बचपन
मासूम चेहरा मुलायम गाल,
छोटी-छोटी आँखें उलझे बाल,
नन्ही उंगलियाँ छोटी सी हथेली,
नन्हे-नन्हे पैर मस्तानी चाल |
कभी करे प्यार कभी मुस्काए,
कभी तो रूठ के दूर भाग जाए,
कभी माँगे मीठा कभी खिलौना,
कभी मेरी गोदी में समाए |
अद्भुत अनोखा चंचल बचपन,
सुख के रंगों में रंगा यह जीवन,
माँ-बाप की आँखों का तारा,
बालक मेरा सबसे प्यारा ||
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