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जनवरी 24, 2024
दिसंबर 30, 2022
यादों में 2022
अमर जवान ज्योति का,
बदल गया मुकाम था,
माता के दरबार में भी,
भगदड़ और कोहराम था |
खूब चला फिर बुलडोज़र,
पंजाब आप के नाम था,
विद्या के मंदिर में भी,
हिजाब पर संग्राम था |
सिरसा से उड़ी एक मिसाइल,
पड़ोसी मुल्क अनजान था,
कश्मीर के आतंक का,
फाइल्स में दर्ज वृत्तांत था |
सिरफिरे ने छेड़ा एक युद्ध,
यूक्रेन में त्राहिमाम था,
अँग्रेज़ों की कश्ती का अब,
ऋषि नया कप्तान था |
काशी में मिला था शिवलिंग,
मस्ज़िद पर सवाल था,
टीवी की बहस का फ़ल,
कन्हैया का इंतकाल था |
लॉन बाल्स में आया सोना,
अग्निवीर परेशान था,
स्वर कोकिला के गमन से,
हर कोई हैरान था |
पश्चिम में बदली सरकार,
धनुष-कमल फ़िर संग थे,
पूरव में दल-बदलू के फ़िर,
बदले-बदले रंग थे |
सबसे बड़े प्रजातंत्र की,
अध्यक्षा फ़िर नारी हुईं,
ग्रैंड ओल्ड पार्टी का प्रमुख,
ना सुत ना महतारी हुई |
दक्षिण से निकला था पप्पू,
भारत को जोड़ने चला,
चुनावी राज्यों से लेकिन,
पृथक निकला काफिला |
भारत में लौटे फ़िर चीते,
5G का आगाज़ हुआ,
मोरबी का ढहा सेतु,
श्रद्धा का दुखद अंजाम हुआ |
प्रगतिपथ पर अग्रसर भारत,
जी20 का प्रधान बना,
विस्तारवादी ताकतों को,
रोकने में सक्षम सदा |
पलक झपकते बीता यह वर्ष,
तेईस आने वाला है,
आशा करता हूँ ये गम नहीं,
खुशियाँ लाने वाला है ||
जून 29, 2022
उदयपुर के कन्हैयालाल जी को श्रद्धांजलि
क्या सिर्फ़ फाँसी पर्याप्त है ?
मौत की सज़ा भी इस आतंक पे काफ़ी नहीं,
हो ऐसा इंसाफ जो मिसाल बनना चाहिए ||
मार्च 01, 2022
महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं
आज महाशिवरात्रि पर मेरी भोले बाबा से प्रार्थना है के यूरोप में चल रहे संग्राम पर विराम लगे और विश्व में शांति बहाल हो |
सत्य की जीत हो, असत्य की हार हो,
शिव से ही प्रारंभ है, शिव ही से विनाश हो,
भोले के ही चरणों में झुका संसार हो,
दुष्टों का अंत हो, अमन का आगाज़ हो ||
फ़रवरी 11, 2022
पढ़ाई करो, लड़ाई नहीं
शिक्षण संस्थानों में धार्मिक महिमा-मंडन का कोई स्थान नहीं होना चाहिए | पढ़ाई करो, लड़ाई नहीं |
दो सालों से वैसे भी,
शिक्षा पर लगी है लगाम,
धरम को थोड़ा बगल में रखो,
ज्ञान के छुओ नए आयाम ||
जनवरी 09, 2022
लोकतंत्र का उत्सव
फ़िर निकले हैं दल-बल लेकर,
चोर-उचक्के और डकैत,
चाहते हैं मायावी कुर्सी,
पाँच साल फ़िर करेंगें ऐश |
मत अपना बहुमूल्य है समझो,
मत करना इन पर बर्बाद,
जाँच-परख कर नेता चुनना,
सुने जो सबकी फ़रियाद ||
दिसंबर 31, 2021
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
ट्रैक्टर पर निकली थी रैली,
गणतंत्र पर सवाल था,
लाल किले पर झंडा लेकर,
आतताईयों का बवाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
घर में बंद था पूरा घराना,
परदा ही बस ढाल था,
खौफ की बहती थी वायु,
गंगा का रंग भी लाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
उखड़ रही थी अगणित साँसें,
कोना-कोना अस्पताल था,
शंभू ने किया था ताण्डव,
दर-दर पर काल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
क्षितिज पर छाई फ़िर लाली,
टीका बेमिसाल था,
माँग और आपूर्ति के बीच,
गड्ढा बड़ा विशाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
ओलिंपिक में चला था सिक्का,
पैरालिंपिक तो कमाल था,
वर्षों बाद मिला था सोना,
सच था या ख्याल था ?
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
टूटा था वो एक सितारा,
मायानगरी की जो शान था,
बादशाह की किस्मत में भी,
कोरट का जंजाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
फीकी पड़ रही थी चाय,
मोटा भाई बेहाल था,
सत्ता के गलियारों में भी,
कृषकों का भौकाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
सुलूर से चला था काफिला,
वेलिंगटन में इस्तकबाल था,
रावत जी की किस्मत में पर,
हाय ! लिखा इंतकाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
काशी का बदला था स्वरूप,
मथुरा भविष्यकाल था,
आम आदमी का लेकिन,
फ़िर भी वही हाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
चुनावों का बजा था डंका,
गरमागरम माहौल था,
बापू को भी गाली दे गया,
संत था या घड़ियाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
स्कूटर पर आता-जाता,
दिखने में कंगाल था,
पर उसके घर में असल में,
200 करोड़ का माल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
थोड़ा-थोड़ा हर्ष था इसमें,
थोड़ा सा मलाल था,
थोड़े गम थे थोड़ी खुशियाँ,
जो भी था, भूतकाल था,
जैसा भी यह साल था ||
अक्टूबर 31, 2021
सरदार पटेल की जयंती पर श्रद्धासुमन
तिनकों को समेट कर इक धागे में पिरोया था,
टुकड़ों को बटोर कर इक राष्ट्र को संजोया था,
नमन है भारतमाता के उस वीर पुत्र को,
नींव में जिसने एकता का इक बीज बोया था ||
फ़रवरी 13, 2021
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
ना मैं भक्त हूँ, ना ही आंदोलनजीवी, ना ही किसी और गुट का सदस्य । मेरी मंशा किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की नहीं है । बस कुनबापरस्ती पर एक व्यंग है । पढ़ें और आनन्द लें । ज़्यादा ना सोचें ।
अचकन पर गुलाब सजाना,
बच्चों का चाचा कहलाना,
सहयोगियों संग मिलजुल कर,
तिनकों से इक राष्ट्र बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
वैरी को धूल चटाना,
दुर्गा सदृश कहलाना,
अभूतपूर्व पराजय से उबरकर,
फिर एक बार सरकार बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
युवावस्था में पद संभालना,
उत्तरदायित्व से ना सकुचाना,
बाघों से सीधे टकराना,
डिज़िटाइज़ेशन की नींव रख जाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
मन की आवाज़ सुन पाना,
सर्वोच्च पद को ठुकराना,
तूफानी समंदर की लहरों में,
डूबती कश्ती को चलाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
कड़े-कठोर निर्णय ले पाना,
पर-सिद्धि को अपना बताना,
शत्रु की मांद में घुसकर,
शत्रु का संहार कराना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
जनमानस का नेता बन जाना,
भविष्य का विकल्प कहलाना,
लिखा हुआ भाषण दोहराना,
अरे आलू से सोना बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
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