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अक्टूबर 10, 2020
अक्टूबर 06, 2020
सुबह सूरज फिर आएगा
जब-जब जीवन के सागर में,
ऊँचा उठता तूफाँ होगा,
जब-जब चौके की गागर में,
पानी की जगह धुँआ होगा,
जब बढ़ते क़दमों के पथ पर,
काँटों का जाल बिछा होगा,
जब तेरे तन की चादर से,
तन ढकना मुमकिन ना होगा |
तब तू गम से ना रुक जाना,
ना सकुचाना, ना घबराना,
आता तूफाँ थम जाएगा,
पग तेरे रोक ना पायेगा,
कर श्रम ऐसा तेरे आगे,
पर्वत भी शीश झुकाएगा,
हंस के जी ले कठिनाई को,
सुबह सूरज फिर आएगा ||
अक्टूबर 03, 2020
2 अक्टूबर
जिसने दी संसार को,
सत-अहिंसा की सीख थी,
जिसकी दृष्टि में किसान की,
अहमियत जवान सरीख थी |
ऐसे महापुरुषों के उद्गम,
की साक्षी यह तारीख है,
निंदा की निरर्थकता का,
प्रमाण हर तारीफ़ है ||
सितंबर 26, 2020
कोरोना
यह अनजाना अदृश्य शत्रु,
जाने कहाँ से आया है,
सारी मानव सभ्यता पर,
इसके भय का साया है |
थम गया जो दौड़ रहा था,
निरंतर निरंकुश - यह संसार,
अचल हुए जो चलायमान थे,
व्यक्ति वाहन और व्यापार |
संगी-साथी से छूट गया,
दिन-प्रतिदिन का सरोकार,
घर से बाहर अब ना जाए,
सांसारिक मानव बार-बार |
आशंकित भयभीत किंकर्तव्यविमूढ़,
जूझ रहा आदम भरपूर,
क्या कर पाएगा इस आफ़त को,
वह समय रहते दूर ???
सितंबर 08, 2020
नवजीवन
भद्दी नगरीय इमारत पर,
जड़ निष्प्राण ठूँठ पर,
मरु की तपती रेत पर,
गिरी के श्वेत कफ़न पर,
नवजीवन का अंकुर फूटे,
प्रतिकूल पर्यावरण का उपहास कर |
अगस्त 20, 2020
क्यों है मानव इतना अधीर ?
हिंसा का करे अभ्यास,
प्रकृति का करे विनाश,
अणु-अणु करके विखंडित,
ऊष्मा का करे विस्फोट,
स्वजनों पर करे अत्याचार,
लकीरों से धरा को चीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
ट्रेनों में चढ़ती भीड़,
ना समझे किसीकी पीड़,
रनवे पे उतरे विमान,
उठ भागे सीट से इंसान,
बेवजह लगाए कतार,
मानो बंटती आगे खीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
उड़ती जब-जब पतंग,
स्वच्छंद आज़ाद उमंग,
करती घायल उसकी डोर,
जो थी काँच से सराबोर,
खेल-खेल में होड़ में,
धागे को बनाता नंगा शमशीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
नवीन नादान निर्दोष मन,
चहकती आँखें कोमल तन,
डाल उनपर आकांशाओं का भार,
करता बालपन का संहार,
थोपता फैसले अपने हर बार,
समझता उनको अपनी जागीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
तारों को छूने की चाह में,
वशीभूत सृष्टि की थाह में,
वन-वसुधा-वायु में घोले विष,
बेवजह करे प्रकृति से रंजिश,
ना समझे कुदरत के इशारे,
कर्मफल के प्रति ना है गंभीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
दौर यह अद्वितीय आया है,
दो गज की दूरी लाया है,
सदियों से परदे में नारी,
आज नर ने साथ निभाया है,
कुछ निर्बुद्धि निरंकुश निराले नर,
तोड़ें नियम समझें खुद को वीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
अगस्त 15, 2020
आओ करें हम याद उन्हें
श्रावण के महीने में इक दिन,
बही थी आज़ादी की बयार,
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को,
बरसी स्वतंत्रता की फुहार |
रवि खिला था रैन घनी में,
दशकों के श्रम का परिणाम,
आओ करें हम याद उन्हें जो,
भेंट चढ़े थे राष्ट्र के नाम ||
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