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नवंबर 04, 2020
अक्टूबर 21, 2020
कुछ अधूरी ख्वाहिशें
वो चेहरा एक सलोना सा,
जो ख़्वाबों में, विचारों में,
अक्सर ज़ाहिर हो जाता है |
जिसको चाहा है उम्रभर,
उसकी यादों के भंवर में,
मन मेरा बस खो जाता है ||
वो शौक एक अनूठा सा,
जिसमें बीता हर इक पल,
मेरे तन-मन को भाता है |
रोज़ी-रोटी के फेर में,
बरबस बीते यह ज़िंदगी,
वक्त थोड़ा मिल ना पाता है ||
वो दामन एक न्यारा सा,
जो बचपन की हर कठिनाई,
का अक्षुण्ण हल कहलाता है |
बेवक्त छूटा था वह साथ,
कह ना पाया था मैं जो बात,
कहने को दिल ललचाता है ||
वो स्वप्न एक प्यारा सा,
जो मन की गहराइयों में,
स्थाई स्थान बनाता है |
भरसक प्रयत्न करके भी,
वह सपना यथार्थ में,
परिवर्तित हो ना पाता है |
वो शोक एक भारी सा,
रह-रहकर चित्त की देह को,
पश्चाताप की टीस चुभोता है |
पृथ्वी की चाल, बहती पवन,
शब्दों के बाण, बीता कल,
पलटना किसको आता है ??
वो भाग्य एक कठोर सा,
कर्मठ मानव के कर्म का,
फल देने से कतराता है |
अपेक्षाओं के ख़ुमार में,
माया के अद्भुत खेल में,
मूर्छित मानव मुस्काता है ||
अक्टूबर 10, 2020
एक भारतीय का परिचय
क्या मेरी पहचान, क्या मेरी कहानी है,
मज़हब मेरा रोटी है, नाम बेमानी है |
संघर्ष मेरा बचपन है, प्रतिस्पर्धा मेरी जवानी है,
बीमार मेरा बुढ़ापा है, जीवन परेशानी है |
पौराणिक मेरी सभ्यता है, परिचय उससे अनजानी है,
वर्तमान मेरा कोरा है, भविष्य रूहानी है |
सरहदें मेरी चौकस हैं, पड़ोसी बड़े शैतानी हैं,
गुलामी के दाग अब भी हैं, ताकत अपनी ना जानी है |
बाबू मेरे साक्षर हैं, नेता अज्ञानी हैं,
जनता मेरी भोली-भाली, सहती मनमानी है |
रंग मेरा गोरा-काला, बातें आसमानी हैं,
पहनावा मेरा विदेशी है, कृत्यों में नादानी है |
और मेरी पहचान नहीं, नम:कार मेरी निशानी है,
भारत मेरा देश है, दिल्ली राजधानी है ||
अक्टूबर 06, 2020
सुबह सूरज फिर आएगा
जब-जब जीवन के सागर में,
ऊँचा उठता तूफाँ होगा,
जब-जब चौके की गागर में,
पानी की जगह धुँआ होगा,
जब बढ़ते क़दमों के पथ पर,
काँटों का जाल बिछा होगा,
जब तेरे तन की चादर से,
तन ढकना मुमकिन ना होगा |
तब तू गम से ना रुक जाना,
ना सकुचाना, ना घबराना,
आता तूफाँ थम जाएगा,
पग तेरे रोक ना पायेगा,
कर श्रम ऐसा तेरे आगे,
पर्वत भी शीश झुकाएगा,
हंस के जी ले कठिनाई को,
सुबह सूरज फिर आएगा ||
अक्टूबर 03, 2020
2 अक्टूबर
जिसने दी संसार को,
सत-अहिंसा की सीख थी,
जिसकी दृष्टि में किसान की,
अहमियत जवान सरीख थी |
ऐसे महापुरुषों के उद्गम,
की साक्षी यह तारीख है,
निंदा की निरर्थकता का,
प्रमाण हर तारीफ़ है ||
सितंबर 26, 2020
कोरोना
यह अनजाना अदृश्य शत्रु,
जाने कहाँ से आया है,
सारी मानव सभ्यता पर,
इसके भय का साया है |
थम गया जो दौड़ रहा था,
निरंतर निरंकुश - यह संसार,
अचल हुए जो चलायमान थे,
व्यक्ति वाहन और व्यापार |
संगी-साथी से छूट गया,
दिन-प्रतिदिन का सरोकार,
घर से बाहर अब ना जाए,
सांसारिक मानव बार-बार |
आशंकित भयभीत किंकर्तव्यविमूढ़,
जूझ रहा आदम भरपूर,
क्या कर पाएगा इस आफ़त को,
वह समय रहते दूर ???
सितंबर 08, 2020
नवजीवन
भद्दी नगरीय इमारत पर,
जड़ निष्प्राण ठूँठ पर,
मरु की तपती रेत पर,
गिरी के श्वेत कफ़न पर,
नवजीवन का अंकुर फूटे,
प्रतिकूल पर्यावरण का उपहास कर |
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