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फ़रवरी 13, 2021
फ़रवरी 04, 2021
कोरोना वैक्सीन
क्षितिज पर छाई है लाली,
लाई सुबह का संदेसा,
घर से बाहर फिर निकलेंगे,
खाने चाट और समौसा,
तब तक लेकिन रखना होगा,
परस्पर दूरी पर ही भरोसा ||
फ़रवरी 03, 2021
कोरोना के अनुभव
चंद हफ़्तों पहले मेरा सामना कोरोना से हुआ | अपने अनुभव को शब्दों में ढालने का एक प्रयत्न किया है |
अपने घर का सुदूर कोना,
नीरस मटमैला बिछौना,
विचरण की आज़ादी खोना,
अपने बर्तन खुद ही धोना,
गली-मौहल्ले में कुख्यात होना,
कि आप लाए हो कोरोना |
परस्पर दूरी का परिहास,
खुले मुँह लेते थे जो श्वास,
करते हैं अब यह विश्वास,
बसता रोग इन्हीं के पास,
रखना दूरी इनसे खास,
बाकी सब सावधानियाँ बकवास |
तन के कष्टों से ज़्यादा,
मन की पीड़ा थी चुभती,
अपनी सेहत से ज़्यादा,
अपनों की व्यथा थी दीखती,
रोगी सा एहसास ना होता,
बंधक सी अनुभूति रहती |
जीवन के सागर की ऊँची,
लहरों को मैंने पार किया,
लेकिन मेरे जैसे जाने,
कितनों को इसने मार दिया,
शोषण से त्रस्त होकर शायद,
कुदरत ने ऐसा वार किया ||
जनवरी 22, 2021
मन के भाव
इस कोरे-कोरे पन्ने पर,
शब्दों के काले धब्बों से,
मन के भावों को अर्पित कर,
रंगों का बाग बसाता हूँ |
इस कोरे-कोरे जीवन में,
हताशा के गहरे तिमिर में,
विश्वास के क़दम बढ़ा,
आशा का दीप जलाता हूँ ||
जनवरी 04, 2021
नववर्ष की शुभकामनाएँ
कष्टों की काली रात में,
गुज़रा यह पूरा साल था,
कष्टों से मुक्ति की सुबह,
आशा है 21 संग लाए ||
दिसंबर 13, 2020
काश मैं पंछी होता
काश मैं पंछी होता,
सुबह-सवेरे नित दिन उठता,
अन्न-फ़ल-दाना-कण चुगता,
खुले गगन में स्वच्छंद फिरता,
दरख्तों की टहनियों पर विचरता,
तिनकों से अपना घर बुनता,
हरी हरी आँचल में बसता |
काश मैं पंछी होता,
सरहद की न बंदिश होती,
आपस में न रंजिश होती,
व्यर्थ की चिंता ना करता,
कंचन के पीछे ना पड़ता,
भूत का ना बोझ ढोता,
कल के कष्टों से कल लड़ता |
काश मैं पंछी होता,
प्रकृति का मैं अंग होता,
उसके नियमों संग होता,
वृक्षों पर जीवन बसाता,
जीवों की हानि ना करता,
पृथ्वी को पावन मैं रखता,
निष्कलंक निष्पाप मैं रहता ||
दिसंबर 06, 2020
जीवनचक्र
मिट्टी के मानव के घर में,
किलकारी भरता जीवन है,
मिट्टी के मानव के घर में,
शोकाकुल मृत्यु क्रन्दन है |
बसंती बाग़-बगीचों में,
पुलकित पुष्पों का जमघट है,
पतझड़ की उस फुलवारी में,
सूखे पत्तों का दर्शन है |
ऊँचे तरुवर के फल का,
नीचे गिरना निश्चित है,
उतार-चढ़ाव जीत-हार जग के,
सौंदर्य के आभूषण हैं |
माया की क्रीड़ा तो देखो,
स्थिर स्थूल केवल परिवर्तन है,
दुःख की रैन के बाद ही,
सुख के दिनकर का वंदन है ||
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