Mann Ke Bhaav offers a vast collection of Hindi Kavitayen. Read Kavita on Nature, sports, motivation, and more. Our हिंदी कविताएं, Poem, and Shayari are available online!
मार्च 08, 2021
मार्च 06, 2021
किस्मत
किस्मत की लकीरों में बंधकर,
खुद को तू ना तड़पा,
जो होना है वो तो होएगा,
जो कर सकता है करके दिखा |
फ़रवरी 18, 2021
टूटा दिल
गलती मेरी थी जो मैंने तुझसे कुछ उम्मीद की,
उसको पूरा करने की तुझसे मैंने ताकीद की ||
फ़रवरी 14, 2021
शुभ वैलेंटाइन्स दिवस
मैं नदी हूँ, तू सागर है |
मैं प्यासा हूँ, तू सावन है |
मैं भँवरा हूँ, तू उपवन है |
मैं विषधर हूँ, तू चन्दन है |
मैं पतंग हूँ, तू पवन है |
मैं फिज़ा हूँ, तू गगन है |
मैं सुबह हूँ, तू दिनकर है |
मैं निशा हूँ, तू पूनम है |
मैं रुग्ण हूँ, तू औषध है |
मैं बेघर हूँ, तू भवन है |
मैं शिशु हूँ, तू दामन है |
मैं देह हूँ, तू श्वसन है |
मैं भक्त हूँ, तू भगवन है |
मैं हृदय हूँ, तू धड़कन है ||
फ़रवरी 13, 2021
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
ना मैं भक्त हूँ, ना ही आंदोलनजीवी, ना ही किसी और गुट का सदस्य । मेरी मंशा किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की नहीं है । बस कुनबापरस्ती पर एक व्यंग है । पढ़ें और आनन्द लें । ज़्यादा ना सोचें ।
अचकन पर गुलाब सजाना,
बच्चों का चाचा कहलाना,
सहयोगियों संग मिलजुल कर,
तिनकों से इक राष्ट्र बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
वैरी को धूल चटाना,
दुर्गा सदृश कहलाना,
अभूतपूर्व पराजय से उबरकर,
फिर एक बार सरकार बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
युवावस्था में पद संभालना,
उत्तरदायित्व से ना सकुचाना,
बाघों से सीधे टकराना,
डिज़िटाइज़ेशन की नींव रख जाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
मन की आवाज़ सुन पाना,
सर्वोच्च पद को ठुकराना,
तूफानी समंदर की लहरों में,
डूबती कश्ती को चलाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
कड़े-कठोर निर्णय ले पाना,
पर-सिद्धि को अपना बताना,
शत्रु की मांद में घुसकर,
शत्रु का संहार कराना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
जनमानस का नेता बन जाना,
भविष्य का विकल्प कहलाना,
लिखा हुआ भाषण दोहराना,
अरे आलू से सोना बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
फ़रवरी 04, 2021
कोरोना वैक्सीन
क्षितिज पर छाई है लाली,
लाई सुबह का संदेसा,
घर से बाहर फिर निकलेंगे,
खाने चाट और समौसा,
तब तक लेकिन रखना होगा,
परस्पर दूरी पर ही भरोसा ||
फ़रवरी 03, 2021
कोरोना के अनुभव
चंद हफ़्तों पहले मेरा सामना कोरोना से हुआ | अपने अनुभव को शब्दों में ढालने का एक प्रयत्न किया है |
अपने घर का सुदूर कोना,
नीरस मटमैला बिछौना,
विचरण की आज़ादी खोना,
अपने बर्तन खुद ही धोना,
गली-मौहल्ले में कुख्यात होना,
कि आप लाए हो कोरोना |
परस्पर दूरी का परिहास,
खुले मुँह लेते थे जो श्वास,
करते हैं अब यह विश्वास,
बसता रोग इन्हीं के पास,
रखना दूरी इनसे खास,
बाकी सब सावधानियाँ बकवास |
तन के कष्टों से ज़्यादा,
मन की पीड़ा थी चुभती,
अपनी सेहत से ज़्यादा,
अपनों की व्यथा थी दीखती,
रोगी सा एहसास ना होता,
बंधक सी अनुभूति रहती |
जीवन के सागर की ऊँची,
लहरों को मैंने पार किया,
लेकिन मेरे जैसे जाने,
कितनों को इसने मार दिया,
शोषण से त्रस्त होकर शायद,
कुदरत ने ऐसा वार किया ||
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