मार्च 14, 2021

मैं हँसना भूल गया

हिंदी कविता Hindi Kavita मैं हँसना भूल गया Main hasna bhool gaya

जब बचपन के मेरे बंधु ने,


चिर विश्वास के तंतु ने,


पीछे से खंजर मार कर,


मेरा भरोसा तोड़ दिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब मेरे दफ़्तर में ऊँचे,


पद पर आसीन साहब ने,


मेरे श्रम को अनदेखा कर,


चमचों से नाता जोड़ लिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब जन्मों के मेरे साथी ने,


सुख और दुःख के हमराही ने,


दुःख के लम्हों को आता देख,


साथ निभाना छोड़ दिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब वर्षों तक सींचे पौधे ने,


उस मेरे अपने बालक ने,


छोटी-छोटी सी बातों पर,


मेरा भर-भर अपमान किया,


मैं हँसना भूल गया |



जिसकी गोदी में रहता था,


जब उस प्यारे से चेहरे ने,


मेरी लाई साड़ी को छोड़,


श्वेत कफ़न ओढ़ लिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब मंज़िल की ओर अग्रसर,


पहले से मुश्किल राहों को,


नियति की कुटिल चाल ने,


हर-हर बार मरोड़ दिया,


मैं हँसना भूल गया |

मार्च 11, 2021

क्या देखूँ मैं ?

हिंदी कविता Hindi Kavita क्या देखूँ मैं Kya dekhun main

रिमझिम बरखा के मौसम में,


घोर-घने-गहरे कानन में,


मेरे नैनों के दर्पण में,


छवि अनोखी गोचर होती –


रंगों की कान्ति से उज्जवल,


सरिता की धारा सा अविरल,


डैनों के नर्तन, की संगी


दो भद्दी फूहड़ टहनियाँ !


लहराते पंखों की शोभा,


या बेढब पैरों की डगमग,


क्या देखूँ मैं ?



माटी के विराट गोले पर,


माया की अद्भुत क्रीड़ा में,


मेरे नैनों के दर्पण में,


छवि अनोखी गोचर होती –


बहती बयार की भांति


जीवनधारा, के हमराही


सुख के लम्हों, का साथी


किंचित कष्टों का रेला है !


हर्षित मानव का चेहरा,


या पीड़ित पुरुष अकेला,


क्या देखूँ मैं ?



पल दो पल की इन राहों में,


वैद्यों के विकसित आलय में,


मेरे नैनों के दर्पण में,


छवि अनोखी गोचर होती –


इत गुंजित होती किलकारी,


अंचल में नटखट अवतारी,


उत शोकाकुल क्रन्दनकारी,


बिछोह के गम से मन भारी !


उत्पत्ति का उन्मुक्त उत्सव,


या विलुप्ति का व्याकुल वास्तव,


क्या देखूँ मैं ?



जनमानस के इस जमघट में,


द्वैत के इस द्वंद्व में,


मेरे नैनों के दर्पण में,


छवि अनोखी गोचर होती –


इस ओर करुणा का सागर,


दीनों के कष्टों के तारक,


उस ओर पापों की गागर,


स्वर्णिम मृग रुपी अपकारक !


उपकारी सत के साधक,


या जग में तम के वाहक,


क्या देखूँ मैं ?



मेरे अंत:करण के भीतर,


चित्त की गहराइयों के अंदर,


मन के नैनों के दर्पण में,


छवि अनोखी गोचर होती –


इक सुगंधित मनोहर फुलवारी,


कंटक से डाली है भारी,


काँटों से विचलित ना होकर,


गुल पर जाऊं मैं बलिहारी !


पवन के झोकों में रहकर,


भी निर्भीक जलते दीपक,


को देखूँ मैं !

मार्च 08, 2021

आज की नारी

हिंदी कविता Hindi Kavita आज की नारी Aaj ki Naari

घर को सिर-माथे पर रखूँ,


ढोऊँ सारी ज़िम्मेदारी,


दफ़्तर भी अपने मैं जाऊँ,


बनकर मैं सबला नारी |



अपने माँ-बाबा को मैं हूँ,


जग में सबसे ज़्यादा प्यारी,


कष्टों को उनके हरने की,


करती हूँ पूरी तैयारी |



सुख-दुःख के अपने साथी पर,


दिल से जाऊँ मैं बलिहारी,


कंधे से कंधा मिलाकर,


चलती हमरी जीवनगाड़ी |



ओछी नज़रों से ना भागूँ,


चाहे बोले दुनिया सारी,


बन काली उसको संहारूँ,


वहशी विकृत व्यभिचारी |



अपनी मर्ज़ी से मैं जीऊँ,


सुख भोगूँ सारे संसारी,


मुझपर जो लगाम लगाए,


पड़ेगा, उसे बड़ा भारी |



देवी का सा रूप है मेरा,


हूँ ना मैं अबला बेचारी,


अपने दम पर शिखर को चूमूँ,


मैं हूँ, आज की नारी ||

मार्च 06, 2021

किस्मत

हिंदी कविता Hindi Kavita किस्मत Kismat


किस्मत की लकीरों में बंधकर,


खुद को तू ना तड़पा,


जो होना है वो तो होएगा,


जो कर सकता है करके दिखा |

फ़रवरी 18, 2021

टूटा दिल

हिंदी कविता Hindi Kavita टूटा दिल Toota Dil

गलती मेरी थी जो मैंने तुझसे कुछ उम्मीद की,


उसको पूरा करने की तुझसे मैंने ताकीद की ||

फ़रवरी 14, 2021

शुभ वैलेंटाइन्स दिवस

हिंदी कविता Hindi Kavita शुभ वैलेंटाइन्स दिवस Happy Valentines Day

मैं नदी हूँ, तू सागर है |


मैं प्यासा हूँ, तू सावन है |


मैं भँवरा हूँ, तू उपवन है |


मैं विषधर हूँ, तू चन्दन है |


मैं पतंग हूँ, तू पवन है |


मैं फिज़ा हूँ, तू गगन है |


मैं सुबह हूँ, तू दिनकर है |


मैं निशा हूँ, तू पूनम है |


मैं रुग्ण हूँ, तू औषध है |


मैं बेघर हूँ, तू भवन है |


मैं शिशु हूँ, तू दामन है |


मैं देह हूँ, तू श्वसन है |


मैं भक्त हूँ, तू भगवन है |


मैं हृदय हूँ, तू धड़कन है ||

फ़रवरी 13, 2021

पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!

हिंदी कविता Hindi Kavita पप्पू, तेरे बस की कहाँ Pappu tere bas ki kahan

ना मैं भक्त हूँ, ना ही आंदोलनजीवी, ना ही किसी और गुट का सदस्य । मेरी मंशा किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की नहीं है । बस कुनबापरस्ती पर एक व्यंग है । पढ़ें और आनन्द लें । ज़्यादा ना सोचें ।



अचकन पर गुलाब सजाना,


बच्चों का चाचा कहलाना,


सहयोगियों संग मिलजुल कर,


तिनकों से इक राष्ट्र बनाना,


पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!



वैरी को धूल चटाना,


दुर्गा सदृश कहलाना,


अभूतपूर्व पराजय से उबरकर,


फिर एक बार सरकार बनाना,


पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!



युवावस्था में पद संभालना,


उत्तरदायित्व से ना सकुचाना,


बाघों से सीधे टकराना,


डिज़िटाइज़ेशन की नींव रख जाना,


पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!



मन की आवाज़ सुन पाना,


सर्वोच्च पद को ठुकराना,


तूफानी समंदर की लहरों में,


डूबती कश्ती को चलाना,


पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!



कड़े-कठोर निर्णय ले पाना,


पर-सिद्धि को अपना बताना,


शत्रु की मांद में घुसकर,


शत्रु का संहार कराना,


पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!



जनमानस का नेता बन जाना,


भविष्य का विकल्प कहलाना,


लिखा हुआ भाषण दोहराना,


अरे आलू से सोना बनाना,


पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!

राम आए हैं