Mann Ke Bhaav offers a vast collection of Hindi Kavitayen. Read Kavita on Nature, sports, motivation, and more. Our हिंदी कविताएं, Poem, and Shayari are available online!
मार्च 14, 2021
मार्च 11, 2021
क्या देखूँ मैं ?
रिमझिम बरखा के मौसम में,
घोर-घने-गहरे कानन में,
मेरे नैनों के दर्पण में,
छवि अनोखी गोचर होती –
रंगों की कान्ति से उज्जवल,
सरिता की धारा सा अविरल,
डैनों के नर्तन, की संगी
दो भद्दी फूहड़ टहनियाँ !
लहराते पंखों की शोभा,
या बेढब पैरों की डगमग,
क्या देखूँ मैं ?
माटी के विराट गोले पर,
माया की अद्भुत क्रीड़ा में,
मेरे नैनों के दर्पण में,
छवि अनोखी गोचर होती –
बहती बयार की भांति
जीवनधारा, के हमराही
सुख के लम्हों, का साथी
किंचित कष्टों का रेला है !
हर्षित मानव का चेहरा,
या पीड़ित पुरुष अकेला,
क्या देखूँ मैं ?
पल दो पल की इन राहों में,
वैद्यों के विकसित आलय में,
मेरे नैनों के दर्पण में,
छवि अनोखी गोचर होती –
इत गुंजित होती किलकारी,
अंचल में नटखट अवतारी,
उत शोकाकुल क्रन्दनकारी,
बिछोह के गम से मन भारी !
उत्पत्ति का उन्मुक्त उत्सव,
या विलुप्ति का व्याकुल वास्तव,
क्या देखूँ मैं ?
जनमानस के इस जमघट में,
द्वैत के इस द्वंद्व में,
मेरे नैनों के दर्पण में,
छवि अनोखी गोचर होती –
इस ओर करुणा का सागर,
दीनों के कष्टों के तारक,
उस ओर पापों की गागर,
स्वर्णिम मृग रुपी अपकारक !
उपकारी सत के साधक,
या जग में तम के वाहक,
क्या देखूँ मैं ?
मेरे अंत:करण के भीतर,
चित्त की गहराइयों के अंदर,
मन के नैनों के दर्पण में,
छवि अनोखी गोचर होती –
इक सुगंधित मनोहर फुलवारी,
कंटक से डाली है भारी,
काँटों से विचलित ना होकर,
गुल पर जाऊं मैं बलिहारी !
पवन के झोकों में रहकर,
भी निर्भीक जलते दीपक,
को देखूँ मैं !
मार्च 08, 2021
आज की नारी
घर को सिर-माथे पर रखूँ,
ढोऊँ सारी ज़िम्मेदारी,
दफ़्तर भी अपने मैं जाऊँ,
बनकर मैं सबला नारी |
अपने माँ-बाबा को मैं हूँ,
जग में सबसे ज़्यादा प्यारी,
कष्टों को उनके हरने की,
करती हूँ पूरी तैयारी |
सुख-दुःख के अपने साथी पर,
दिल से जाऊँ मैं बलिहारी,
कंधे से कंधा मिलाकर,
चलती हमरी जीवनगाड़ी |
ओछी नज़रों से ना भागूँ,
चाहे बोले दुनिया सारी,
बन काली उसको संहारूँ,
वहशी विकृत व्यभिचारी |
अपनी मर्ज़ी से मैं जीऊँ,
सुख भोगूँ सारे संसारी,
मुझपर जो लगाम लगाए,
पड़ेगा, उसे बड़ा भारी |
देवी का सा रूप है मेरा,
हूँ ना मैं अबला बेचारी,
अपने दम पर शिखर को चूमूँ,
मैं हूँ, आज की नारी ||
मार्च 06, 2021
किस्मत
किस्मत की लकीरों में बंधकर,
खुद को तू ना तड़पा,
जो होना है वो तो होएगा,
जो कर सकता है करके दिखा |
फ़रवरी 18, 2021
टूटा दिल
गलती मेरी थी जो मैंने तुझसे कुछ उम्मीद की,
उसको पूरा करने की तुझसे मैंने ताकीद की ||
फ़रवरी 14, 2021
शुभ वैलेंटाइन्स दिवस
मैं नदी हूँ, तू सागर है |
मैं प्यासा हूँ, तू सावन है |
मैं भँवरा हूँ, तू उपवन है |
मैं विषधर हूँ, तू चन्दन है |
मैं पतंग हूँ, तू पवन है |
मैं फिज़ा हूँ, तू गगन है |
मैं सुबह हूँ, तू दिनकर है |
मैं निशा हूँ, तू पूनम है |
मैं रुग्ण हूँ, तू औषध है |
मैं बेघर हूँ, तू भवन है |
मैं शिशु हूँ, तू दामन है |
मैं देह हूँ, तू श्वसन है |
मैं भक्त हूँ, तू भगवन है |
मैं हृदय हूँ, तू धड़कन है ||
फ़रवरी 13, 2021
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
ना मैं भक्त हूँ, ना ही आंदोलनजीवी, ना ही किसी और गुट का सदस्य । मेरी मंशा किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की नहीं है । बस कुनबापरस्ती पर एक व्यंग है । पढ़ें और आनन्द लें । ज़्यादा ना सोचें ।
अचकन पर गुलाब सजाना,
बच्चों का चाचा कहलाना,
सहयोगियों संग मिलजुल कर,
तिनकों से इक राष्ट्र बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
वैरी को धूल चटाना,
दुर्गा सदृश कहलाना,
अभूतपूर्व पराजय से उबरकर,
फिर एक बार सरकार बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
युवावस्था में पद संभालना,
उत्तरदायित्व से ना सकुचाना,
बाघों से सीधे टकराना,
डिज़िटाइज़ेशन की नींव रख जाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
मन की आवाज़ सुन पाना,
सर्वोच्च पद को ठुकराना,
तूफानी समंदर की लहरों में,
डूबती कश्ती को चलाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
कड़े-कठोर निर्णय ले पाना,
पर-सिद्धि को अपना बताना,
शत्रु की मांद में घुसकर,
शत्रु का संहार कराना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
जनमानस का नेता बन जाना,
भविष्य का विकल्प कहलाना,
लिखा हुआ भाषण दोहराना,
अरे आलू से सोना बनाना,
पप्पू, तेरे बस की कहाँ !!
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