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मई 06, 2021
मई 01, 2021
गंतव्यपथ
बढ़ते-बढ़ते जब खुद को तुम,
भटका हुआ पाओगे,
अंधियारे में मंज़िल की,
राहों से खो जाओगे,
हालातों से हारकर जब तुम,
बस रुकना चाहोगे |
हिम्मत को अपनी बाँध बस तुम,
आगे बढ़ते जाना,
लक्ष्य की सिद्धी से पहले,
खुद-ब-खुद मत रुक जाना,
क्या मालूम दो पग आगे ही,
लिखा हो मंज़िल पाना ||
अप्रैल 22, 2021
पृथ्वी दिवस
सृष्टि के सुंदर स्वरूप को संकटग्रस्त तू ना कर,
सृष्टि से ही तू है मानव, सृष्टि की रक्षा कर ||
अप्रैल 20, 2021
हारेंगे नहीं हम
मन में संकल्प ठान कर,
काटों को रस्ता मान कर,
बढ़ते जायेंगे हम,
हारेंगे नहीं हम |
इक पग को पीछे रखकर,
दो पग आगे सरककर,
भागेंगे तेज़ हम,
हारेंगे नहीं हम |
हमराही से बिछड़कर,
अपनों से चाहे लड़कर,
भले अकेले हम,
हारेंगे नहीं हम |
सच का हाथ पकड़कर,
दुश्मन के हाथों मरकर,
फिर-फिर जीयेंगे हम,
हारेंगे नहीं हम |
रस्ते में थोड़ा थककर,
ठोकर खाकर और गिरकर,
फिरसे उठेंगे हम,
हारेंगे नहीं हम |
मंज़िल को अपना बनाकर,
राह के काँटों को मिटाकर,
इक दिन जीतेंगे हम,
तब तक,
हारेंगे नहीं हम ||
अप्रैल 15, 2021
ये इमारत !
नवयौवन के आँगन में,
सौंदर्य के परचम पर,
अनुपम रंगो को कर धारण,
अभिमान का बन उदाहरण,
अपने ही आकर्षण से अभिभूत,
कैसे गौरवान्वित हो रही है ये इमारत !
अपराह्न की बेला में,
गफलत के सबब से,
रूप-रंग थोड़ा है बाकी,
गुज़रे लम्हों का है साक्षी,
बनकर अपनी बस एक झाँकी,
कैसे जीर्ण-क्षीण हो रही है ये इमारत !
कभी कौतूहल का कारण बनी,
खिदमतगारों से रही पटी,
आज खंडहर हो चली है,
सूखे पत्तों की डली है,
माटी में मिलने को आतुर,
कैसे छिन्न-भिन्न हो रही है ये इमारत !
अप्रैल 02, 2021
भगवान ! कहाँ है तू?
जब निहत्थे निरपराधों को सूली पे चढ़ाया जाता है,
जब सरहद पर जवानों का रुधिर बहाया जाता है,
जब धन की ख़ातिर अपने ही बंगले को जलाया जाता है,
जब तन की ख़ातिर औरत को नज़रों में गिराया जाता है,
जब नन्हे-नन्हे बच्चों को भूखे ही सुलाया जाता है,
जब पत्थर की तेरी मूरत पर कंचन को लुटाया जाता है,
जब सच के राही को हरदम बेहद सताया जाता है,
जब गौ के पावन दूध में पानी को मिलाया जाता है,
जब तेरे नाम पर अक्सर पाखण्ड फैलाया जाता है,
जब तेरे नाम पर हिंदू-मुस्लिम को लड़ाया जाता है,
तब-तब मेरे दिल में बस एक ख्याल आता है,
तू सच में है भी या बस किस्सों में ही बताया जाता है ||
मार्च 29, 2021
होली
जीवन में सबके घुल जाएँ खुशियों के हज़ारों रंग,
घृणा रोग सब मिट जाएँ, छाए चहुँ ओर उल्लास उमंग |
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