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जनवरी 23, 2022
जनवरी 09, 2022
लोकतंत्र का उत्सव
फ़िर निकले हैं दल-बल लेकर,
चोर-उचक्के और डकैत,
चाहते हैं मायावी कुर्सी,
पाँच साल फ़िर करेंगें ऐश |
मत अपना बहुमूल्य है समझो,
मत करना इन पर बर्बाद,
जाँच-परख कर नेता चुनना,
सुने जो सबकी फ़रियाद ||
दिसंबर 31, 2021
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
ट्रैक्टर पर निकली थी रैली,
गणतंत्र पर सवाल था,
लाल किले पर झंडा लेकर,
आतताईयों का बवाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
घर में बंद था पूरा घराना,
परदा ही बस ढाल था,
खौफ की बहती थी वायु,
गंगा का रंग भी लाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
उखड़ रही थी अगणित साँसें,
कोना-कोना अस्पताल था,
शंभू ने किया था ताण्डव,
दर-दर पर काल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
क्षितिज पर छाई फ़िर लाली,
टीका बेमिसाल था,
माँग और आपूर्ति के बीच,
गड्ढा बड़ा विशाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
ओलिंपिक में चला था सिक्का,
पैरालिंपिक तो कमाल था,
वर्षों बाद मिला था सोना,
सच था या ख्याल था ?
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
टूटा था वो एक सितारा,
मायानगरी की जो शान था,
बादशाह की किस्मत में भी,
कोरट का जंजाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
फीकी पड़ रही थी चाय,
मोटा भाई बेहाल था,
सत्ता के गलियारों में भी,
कृषकों का भौकाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
सुलूर से चला था काफिला,
वेलिंगटन में इस्तकबाल था,
रावत जी की किस्मत में पर,
हाय ! लिखा इंतकाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
काशी का बदला था स्वरूप,
मथुरा भविष्यकाल था,
आम आदमी का लेकिन,
फ़िर भी वही हाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
चुनावों का बजा था डंका,
गरमागरम माहौल था,
बापू को भी गाली दे गया,
संत था या घड़ियाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
स्कूटर पर आता-जाता,
दिखने में कंगाल था,
पर उसके घर में असल में,
200 करोड़ का माल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
थोड़ा-थोड़ा हर्ष था इसमें,
थोड़ा सा मलाल था,
थोड़े गम थे थोड़ी खुशियाँ,
जो भी था, भूतकाल था,
जैसा भी यह साल था ||
दिसंबर 27, 2021
पहला प्यार
वो पहला-पहला प्यार,
वो छुप-छुप के दीदार,
वो मन ही मन इकरार,
वो कहने के विचार,
वो सकुचाना हर बार,
फिर आजीवन इंतज़ार ||
दिसंबर 13, 2021
हर-हर महादेव
हर-हर करता हर एक जन पहुँच रहा अब हर के धाम,
हर हैं भोले हर ही भैरव, हर ही हैं करुणा के धाम ||
दिसंबर 05, 2021
विजयपथ
काँटों के बगैर कोई बागान नहीं होता,
जीत का रस्ता कभी आसान नहीं होता ||
नवंबर 09, 2021
हमने एक बीज बोया था
सूखे निर्जल मरुस्थल में,
मृगतृष्णा के भरम में,
सर्वस्व जब खोया था,
हमने एक बीज बोया था |
जब सपना अपना टूटा था,
अनपेक्षित अंकुर फूटा था,
श्रम से उसको संजोया था,
हमने एक बीज बोया था |
आज मरु पर उपवन छाया है,
जो चाहा था वह पाया है,
फलों से नत लहराया है,
हमने जो बीज बोया था ||
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