फ़रवरी 23, 2023

उम्मीद

हिंदी कविता Hindi Kavita उम्मीद Ummeed

गलती मेरी थी जो मैंने तुझसे कुछ उम्मीद की,



उसको पूरा करने की तुझसे मैंने ताकीद की ||

तेरा आशिक हूँ

हिंदी कविता Hindi Kavita तेरा आशिक हूँ Tera Aashiq Hoon

तेरा आशिक हूँ,


मैं तेरा साथ निभाऊंगा,


गर तू बसेगी काँटों में,


मैं भँवरा वहीं मंडराऊंगा ||

वो पहला पहला प्यार

हिंदी कविता Hindi Kavita वो पहला पहला प्यार Vo Pehla Pehla Pyaar

वो पहला-पहला प्यार,


वो छुप-छुप के दीदार,


वो मन ही मन इकरार,


वो कहने के विचार,


वो सकुचाना हर बार,


फिर आजीवन इंतज़ार ||

फ़रवरी 03, 2023

तेरी मुस्कान

हिंदी कविता Hindi Kavita तेरी मुस्कान Teri Muskaan

सहस्त्र पुष्पों से सुंदर है,


तेरी मुस्कान |



बरखा की बूंदों सी निर्मल है,


तेरी मुस्कान |



कभी संकट का बिगुल है,


तेरी मुस्कान |



कभी खुशियों की लहर है,


तेरी मुस्कान |



नन्हे बालक सी चंचल है,


तेरी मुस्कान |



दिल की पीड़ा का हरण है,


तेरी मुस्कान |



मुश्किल दिनों का तारण है,


तेरी मुस्कान |



हताशा में आशा की किरण है,


तेरी मुस्कान |



बढ़ते कदमों की ताकत है,


तेरी मुस्कान |



मेरी सुबह का सूरज है,


तेरी मुस्कान ||




फ़रवरी 01, 2023

नज़रें

हिंदी कविता Hindi Kavita नज़रें Nazrein

लब चाहे कुछ भी ना बोलें,


नज़रें सबकुछ कह देती हैं,


दिल के राज़ भले ना खोलें,


आँखें दर्द बयाँ करती हैं ||

जनवरी 30, 2023

चाँद और रजनी की प्रेम कहानी

हिंदी कविता Hindi Kavita चाँद और रजनी की प्रेम कहानी Chand aur Rajni ki Prem Kahani

चाँद ने रजनी से कहा –


मैं उजला श्वेत सलोना सा,


तू काली स्याह कुरूपनी,


मैं प्रेम का रूपक हूँ,


तू अँधियारे की दासिनी,


अपनी कौमुदी को मैं तुझ,


तमस्विनी पर क्यों बरसाऊं?


मैं भोर के प्रेम में रत हूँ,


निशा को क्यों मैं अपनाऊं?



रजनी ने चंदा से कहा –


तू दिनकर की आभा से प्रोत,


दंभ से क्यों इतराता है?


तू बदलाव का रूपक है,


प्रभात को तू ना भाता है,


ऊषा को भास्कर का वर है,


मैं श्रापित तन्हा कलंकिनी,


अपनी कांति मुझपर बरसा,


मैं तेरे प्यार की प्यासिनी ||

जनवरी 24, 2023

चौपाल का बरगद

हिंदी कविता Hindi Kavita चौपाल का बरगद Chaupal ka Bargad

दादा मेरे कहते थे –


जब गाँव में सड़कें ना थीं,


ना पानी था ना बिजली थी,


तब भी गुमसुम इन राहों पर,


गाँव के बीच चौपाल पर,


एक अतिविशाल बरगद था |



बरगद की शीतल छाया में,


पंचायत बैठा करती थी,


गाँव समाया करता था,


बच्चे भी खेला करते थे,


सावन में झूले सजते थे,


हलचल का केंद्र वो बरगद था |



बरगद की असंख्य भुजाओं पर,


कोयलें कूका करती थीं,


गिलहरियाँ फुदकतीं थीं,


मुसाफ़िर छाया पाते थे,


दिन में वहीं सुस्ताते थे,


जटाओं भरा वो बरगद था |



गाँव में अब मैं रहता हूँ,


लकड़ी लेकर मैं चलता हूँ,


गुमसुम सी उन्हीं राहों पर,


गाँव के बीच चौपाल पर,


पोते को अपने कहता हूँ –


देखो यह वो ही बरगद है ||

राम आए हैं