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जनवरी 22, 2021
जनवरी 04, 2021
नववर्ष की शुभकामनाएँ
कष्टों की काली रात में,
गुज़रा यह पूरा साल था,
कष्टों से मुक्ति की सुबह,
आशा है 21 संग लाए ||
दिसंबर 13, 2020
काश मैं पंछी होता
काश मैं पंछी होता,
सुबह-सवेरे नित दिन उठता,
अन्न-फ़ल-दाना-कण चुगता,
खुले गगन में स्वच्छंद फिरता,
दरख्तों की टहनियों पर विचरता,
तिनकों से अपना घर बुनता,
हरी हरी आँचल में बसता |
काश मैं पंछी होता,
सरहद की न बंदिश होती,
आपस में न रंजिश होती,
व्यर्थ की चिंता ना करता,
कंचन के पीछे ना पड़ता,
भूत का ना बोझ ढोता,
कल के कष्टों से कल लड़ता |
काश मैं पंछी होता,
प्रकृति का मैं अंग होता,
उसके नियमों संग होता,
वृक्षों पर जीवन बसाता,
जीवों की हानि ना करता,
पृथ्वी को पावन मैं रखता,
निष्कलंक निष्पाप मैं रहता ||
दिसंबर 06, 2020
जीवनचक्र
मिट्टी के मानव के घर में,
किलकारी भरता जीवन है,
मिट्टी के मानव के घर में,
शोकाकुल मृत्यु क्रन्दन है |
बसंती बाग़-बगीचों में,
पुलकित पुष्पों का जमघट है,
पतझड़ की उस फुलवारी में,
सूखे पत्तों का दर्शन है |
ऊँचे तरुवर के फल का,
नीचे गिरना निश्चित है,
उतार-चढ़ाव जीत-हार जग के,
सौंदर्य के आभूषण हैं |
माया की क्रीड़ा तो देखो,
स्थिर स्थूल केवल परिवर्तन है,
दुःख की रैन के बाद ही,
सुख के दिनकर का वंदन है ||
नवंबर 28, 2020
बेमतलब है
मतलब की सारी दुनिया है,
मतलब के सारे रिश्ते हैं,
जिसको मेरी कदर नहीं,
उससे रिश्ता बेमतलब है |
सबके अपने मसले हैं,
सबके अपने मंसूबे हैं,
मन के बहरों से क्या बोलूं,
कुछ भी कहना बेमतलब है |
जीते-जी जीना ना जाना,
कल के जीवन पर पछताना,
हालात बदलने से कतराना,
ऐसा जीवन बेमतलब है ||
नवंबर 23, 2020
कविता क्या है ?
दिनकर के वंदन में कलरव,
पवन के झोंके में पल्लव,
पुष्पों पर भँवरों का गुंजन,
नभ पर मेघों का गर्जन |
वन में कुलाँचते सारंग,
अम्बर पर अलंकृत सतरंग,
सागर की लहरों की तरंग,
उत्सव में बजता मृदंग |
पन्ने पर लिखा कोई गीत,
कर्णप्रिय मधुरम संगीत,
जीवन का हर वो पल,
जो बीते संग मनमीत ||
नवंबर 17, 2020
मैंने एक ख्वाब देखा
माता की गोद जैसे,
मखमल के नर्म बिस्तर पर,
संगिनी की बांहों में,
निद्रा की गहराइयों में,
मैंने एक ख्वाब देखा |
नीले आज़ाद गगन में,
हल्की बहती पवन में,
पिंजरे को छोड़,
बेड़ी को तोड़,
उड़ता जाऊं क्षितिज की ओर |
श्वेत उजाड़ गिरी से,
ऊबड़-खाबड़ भूमि से,
ध्येय को तलाश,
राह को तराश,
बहता जाऊं सागर की ओर |
मिथ्या मलिन जगत से,
जीवन-मरण गरल से,
निद्रा से जाग,
व्यसनों को त्याग,
बढ़ता जाऊं मंज़िल की ओर ||
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