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जनवरी 30, 2023
चाँद और रजनी की प्रेम कहानी
मैं तेरे प्यार की प्यासिनी ||
जनवरी 24, 2023
चौपाल का बरगद
दादा मेरे कहते थे –
जब गाँव में सड़कें ना थीं,
ना पानी था ना बिजली थी,
तब भी गुमसुम इन राहों पर,
गाँव के बीच चौपाल पर,
एक अतिविशाल बरगद था |
बरगद की शीतल छाया में,
पंचायत बैठा करती थी,
गाँव समाया करता था,
बच्चे भी खेला करते थे,
सावन में झूले सजते थे,
हलचल का केंद्र वो बरगद था |
बरगद की असंख्य भुजाओं पर,
कोयलें कूका करती थीं,
गिलहरियाँ फुदकतीं थीं,
मुसाफ़िर छाया पाते थे,
दिन में वहीं सुस्ताते थे,
जटाओं भरा वो बरगद था |
गाँव में अब मैं रहता हूँ,
लकड़ी लेकर मैं चलता हूँ,
गुमसुम सी उन्हीं राहों पर,
गाँव के बीच चौपाल पर,
पोते को अपने कहता हूँ –
देखो यह वो ही बरगद है ||
जनवरी 01, 2023
2023 का स्वागत
नूतन रवि उदित हुआ है,
समस्त तमस मिटाने को,
हठ से कदम बढ़ाने को,
मंज़िल तक बढ़ते जाने को ||
दिसंबर 30, 2022
यादों में 2022
अमर जवान ज्योति का,
बदल गया मुकाम था,
माता के दरबार में भी,
भगदड़ और कोहराम था |
खूब चला फिर बुलडोज़र,
पंजाब आप के नाम था,
विद्या के मंदिर में भी,
हिजाब पर संग्राम था |
सिरसा से उड़ी एक मिसाइल,
पड़ोसी मुल्क अनजान था,
कश्मीर के आतंक का,
फाइल्स में दर्ज वृत्तांत था |
सिरफिरे ने छेड़ा एक युद्ध,
यूक्रेन में त्राहिमाम था,
अँग्रेज़ों की कश्ती का अब,
ऋषि नया कप्तान था |
काशी में मिला था शिवलिंग,
मस्ज़िद पर सवाल था,
टीवी की बहस का फ़ल,
कन्हैया का इंतकाल था |
लॉन बाल्स में आया सोना,
अग्निवीर परेशान था,
स्वर कोकिला के गमन से,
हर कोई हैरान था |
पश्चिम में बदली सरकार,
धनुष-कमल फ़िर संग थे,
पूरव में दल-बदलू के फ़िर,
बदले-बदले रंग थे |
सबसे बड़े प्रजातंत्र की,
अध्यक्षा फ़िर नारी हुईं,
ग्रैंड ओल्ड पार्टी का प्रमुख,
ना सुत ना महतारी हुई |
दक्षिण से निकला था पप्पू,
भारत को जोड़ने चला,
चुनावी राज्यों से लेकिन,
पृथक निकला काफिला |
भारत में लौटे फ़िर चीते,
5G का आगाज़ हुआ,
मोरबी का ढहा सेतु,
श्रद्धा का दुखद अंजाम हुआ |
प्रगतिपथ पर अग्रसर भारत,
जी20 का प्रधान बना,
विस्तारवादी ताकतों को,
रोकने में सक्षम सदा |
पलक झपकते बीता यह वर्ष,
तेईस आने वाला है,
आशा करता हूँ ये गम नहीं,
खुशियाँ लाने वाला है ||
दिसंबर 09, 2022
धारा का पेड़
एक बार मैंने देखा
बरसाती नदी के बहाव में
एक पेड़ खड़ा था,
जैसे कुरुक्षेत्र की भूमि पर
अपने नातेदारों से
अभिमन्यु लड़ा था |
विपरीत परिस्तिथियों से
धारा के प्रचंड प्रवाह से
किंचित न डरा था,
घोंसले में बैठे चंद
पंछियों को बारिश से
वो अकेला आसरा था |
विपत्तियों की बाढ़ में
टूट कर बिखरा नहीं
अपितु अधिक हरा था,
अगले साल मैंने देखा
सावन के महीने में फ़िर
वो पेड़, वहीं खड़ा था ||
नवंबर 26, 2022
कुछ तो कहते हैं ये पत्ते
बरखा की बूंदों सरीख,
बयार में जब ये बहते,
कल डाली से बंधे थे,
आज कूड़े के ढेर में रहते |
पतझड़ की हवाओं में,
बसंत का एहसास बनते,
कोंपल रूप में फिर आयेंगे,
नवारम्भ की गाथा कहते ||
नवंबर 20, 2022
जीवनमंत्र
हँसते रहने की खातिर ही मैं यह जीवन जीता हूँ,
ज़िंदा रहने की खातिर ही थोड़ा-थोड़ा हँसता हूँ ||
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